कविता

कविता : मैं बहुत बहादुर हूँ

मुझे मरने से
डर नहीं लगता
क्योंकि मैं बहुत बहादुर हूँ
पर जब भी लगता है कि
मैं मर भी सकता हूँ तो
मुझे अपने जाने के
मतलब मरने के
बाद की परिस्थितियां
अचानक से ही
दिखाई देने लगती हैं
जिसमें मैं अपने
बिलखते माँ-बाप को
बार-बार देखता हूँ
जिनके बुढ़ापे का
मैं ही हूँ सहारा
जिनके सपनों और
ढेर सारी आशाओं को
पूरा करने का किया है
मैंने उनसे वायदा
मेरे जाने के बाद
क्या होगा उन आशाओं
और सपनों का
और क्या होगा
उनसे बार-बार किए
मेरे उन वायदों का
कैसे जिएंगे
मेरे बिना
मेरी ऊँगली पकड़कर
मुझे चलना सिखानेवाले
सच कहूँ
यही सोचकर
मैं अचानक डर जाता हूँ
और अगले ही पल
मैं जीवन के रण को
जीतने के लिए
उठ खड़ा होता हूँ
क्योंकि मैं बहुत बहादुर हूँ
हूँ न?
लेखक : सुमित प्रताप सिंह

सुमित प्रताप सिंह

मैं एक अदना सा लेखक हूँ और लिखना मेरा पैशन है। बाकी मेरे बारे में और कुछ जानना चाहते हैं तो http://www.sumitpratapsingh.com/ पर पधारिएगा।

2 thoughts on “कविता : मैं बहुत बहादुर हूँ

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह ! बहुत सुन्दर !!

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    बढियां

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