कविता

वियोग श्रृंगार

दोहा :-

कृष्ण कहे ऊधो सुनो,
जाओ यमुना पार ।
याद करें गोपी  कभी,
या फिर दिया बिसार ।।
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ऊधो पहुँचे गोपिन द्वार
हाथ जोड़ कर करे गुहार
वंदन मेरा हो स्वीकार
करनी मोहे बातें चार

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ऊधो कहे सुनो बृज नार
इतनी बस मेरी दरकार
मनमोहन कूँ देउ बिसार
खेल समझ बैठा वो प्यार
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दोहा :-
चला गया वो छोड़कर,
भूल सभी का प्यार ।
नई जिंदगी जी रहा,
बीता दिया बिसार ।।
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हम साँचो कीन्हे है प्यार
कैसे दे फिर उसे बिसार
खेल न खेले हम सरकार
कान्हा जान प्राण आधार

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सखी कहे सब एकहि बात
ऊधो कटे नही दिन रात
बैरिन विरहा करती घात
टप टप आँसू फिर गिर जात

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जबते छाँड़ि गयो गोपाल
कौन हमारो राखे ख्याल
सुधि नहिँ ली पूछो नहिँ हाल
जीवत बचे उठायो काल

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✍?नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
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नवीन श्रोत्रिय 'उत्कर्ष'

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