कविता

खुश रहकर दिखाना है

एक दिन मैं पार्क में सैर को आई
कोई सहेली न देखकर कुछ-कुछ मुर्झाई
मायूसी से अपने को अकेला जान चली जा रही थी
पीछे से एक फूल की महकीली आवाज़ आई
“अपने को अकेला क्यों समझती हो
कोई नहीं है तो क्या मैं तो हूं ना!
मुझे ही अपना सखा समझकर
थोड़ी देर तो मुझसे बतियाना
मेरा भी कुछ मन बहल जाएगा
आपका भी समय अच्छा गुज़र जाएगा
हो सकता है मैं भी कुछ आपसे कुछ सीख जाऊं
या सम्भवतः मैं ही आपको कुछ सिखा पाऊं.”
ऐसा अनोखा साथी पाकर मैं हर्षाई
फूल ने भी महसूस किया कि मैं मुस्काई
मैं बोली, “मैं तो रोज़ सखियों के संग बतियाती हूं
आज आप ही कुछ बतादो भाई.”
फूल बोला, “मैं क्या बता सकता हूं आपको
हमारा जीवन तो खुली किताब है
प्रभु से महक पाते हैं, जग के लिए लुटाते हैं
हमारे लिए तो यही वरदान है, बड़ा ख़िताब है
हम कांटों में रहकर भी मुस्काते हैं
कांटों से तनिक नहीं घबराते हैं
जिस प्रभु ने हमें यह महक प्रदान की है
दिन-रात उन्हीं के गुण भी गाते हैं
हमें अपने अनेक मनभावन रंगीलेपन,
आकारों-प्रकारों, सुंदरता, कोमलता, महकीलेपन
उमंग और प्रेम के प्रतीक आदि के लिए
ढेर सारे विशेषणों से विभूषित किया जाता है
किंतु, हम ज़रा भी नहीं इतराते हैं
रस लेने मधुमक्खियां, तितलियां और भौंरे आएं-न-आएं
हम इंतज़ार में अपना अमन-चैन नहीं गंवाते हैं
हमें दुल्हिन के सिंगार के लिए ले जाया जाए
या शव पर बिछाने के लिए
या फिर प्रभु के चरणों में अर्पित करने के लिए
हम निर्लिप्त ही रहते हैं
हमें आप लोग डाल पर ही रहने दें
या तोड़ डालें
हमें उससे क्या
हमें तो कुछ समय पश्चात
स्वयं ही बिखर ही जाना है
गुलदस्ते में मिलकर एक साथ रहने को
हमने अपनी नियति माना है
आप अपने बच्चों को कविता सिखाते हैं
“फूलों से नित हंसना सीखो”
सम्भवतः हम उस कसौटी पर खरे उतरते हैं
हम हरदम हंसते रहते हैं, खुश रहते हैं
कभी-कभी कांटों से लबालब कैक्टस में भी
हम अपनी झलक पाकर अपने को धन्य समझते हैं
और हां आप तो जानती ही होंगी कि
गुलाब के फूल को “फूलों का राजा” कहते हैं
यही है हमारा छोटा-सा अफ़साना
कैसा लगा बताना चाहो तो बताना.”
यह कहकर फूल तो हो गया खामोश
मैं बोली, “भाई तुमने तो
उड़ा दिए मेरे होश
यह मात्र अफ़साना नहीं, मधुर तराना है
केवल तुम्हें ही नहीं
सारे जग को सुनाना है
उससे भी ज़्यादा
हर हाल में
खुद को हंसना सिखाना है
खुश रहकर दिखाना है,
खुश रहकर दिखाना है,
खुश रहकर दिखाना है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244