गीतिका/ग़ज़ल

अपने माथे पे बना बिंदियाँ सजा ले मुझको

अपने माथे पे बना बिंदियाँ सजा ले मुझको
चाहतों के तु समन्दर में डुबा ले मुझको

 

दूर रहकर मैं अधूरा सा रहा करता हूँ

आबे-उल्फ़त में नमक जैसे मिला ले मुझको

 

ये ज़माना तो निभा पाया नहीं इक दिन भी
इस ज़माने के लिए तू ही निभा ले मुझको

 

साथ में माँ की दुआओं का कवच है जब तक
आग में दम ये कहाँ हाथ लगा ले मुझको

 

कामयाबी का सफ़र मैं भी पूरा कर लेता
रोक लेते जो नहीं पाँव के छाले मुझको

 

रातभर ख़ूब लड़ा हूँ मैं अँधेरों से जब
तब कहीं जाके मिले हैं ये उजाले मुझको

 

कोशिशें लाख यूँ करने को भले ही कर ले
पर न होगा ये कभी के तू झुका ले मुझको

 

 

महेश कुमार कुलदीप ‘माही’

जयपुर, राजस्थान

22 सितम्बर, 2016

 

महेश कुमार कुलदीप

स्नातकोत्तर शिक्षक-हिन्दी केन्द्रीय विद्यालय क्रमांक-3, ओ.एन.जी.सी., सूरत (गुजरात)-394518 निवासी-- अमरसर, जिला-जयपुर, राजस्थान-303601 फोन नंबर-8511037804