गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल – आँख जब भी कभी लड़ी होगी

बहरे ख़फ़ीफ़ मुसद्दस् मख़बून
फाइलातुन मुफाइलुन् फेलुन

2122 1212 22

उन  अदाओं  में  तिश्नगी  होगी ।
कोई   खुशबू   नई   नई  होगी ।।

यूं  ही  नाराजगी   नही   रखता ।
बात उसने भी कुछ कही होगी ।।

होश आया कहाँ उसे अब तक ।
कुछ तबीयत मचल गई होगी ।।

बेकरारी  का  बस यही आलम ।
बे  खबर  नींद  में  चली  होगी ।।

कर गया इश्क में तिज़ारत वह ।
शक है नीयत नहीं भली होगी ।।

वो  बगावत  की बात करता है ।
खबर  शायद  सही  पढ़ी होगी ।।

फ़ितरत ए आइना मुकम्मल है ।
हर हक़ीक़त बुरी  लगी  होगी ।।

चाहतें   जुर्म   हैं   ज़माने   में ।
बे  दखल आरजू  पड़ी  होगी ।।

दाग चूनर का धुल नही सकता ।
हो के मायूस चुप  खड़ी   होगी ।।

याद हर  बार  वो  किया  होगा ।
आँख जब भी कभी लड़ी होगी ।।

नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

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