कुंडलिया छंद
सबकी झोली भरें माँ, रहे न खाली हाथ
रोजी रोटी कठौता, पुलकित रहे संगाथ
पुलकित रहे संगाथ, मातु करो कृपा काली
रावण कर दस माथ, न हो पाए बलशाली
कह गौतम हरषाय, दशहरा मेला झपकी
दीप दिवाली लाय, ख़ुश रहे झोली सबकी
— महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी