बिन दर्जी के वसन सिले हैं
घर आँगन में फूल खिले हैं ।
गुलशन में गुल नूर मिले हैं ।
चाहत भर आँखों ने देखा ।
बिन दर्जी के वसन सिले हैं ।
अटपट शब्दों से खेला हूँ ।
कुछ सिकवे मन यार गिले हैं ।
मन में चाहत दूर न जाऊं ।
कुछ परिचित अहसास मिले हैं ।
मन भावन सावन की झलकी।
अनुरागित नभ हूर हिले हैं ।
राजकिशोर मिश्र ‘राज’ ‘
०३/११/२०१६