संस्मरण

मेरी कहानी 178

होटल विंटर पैलेस में काफी दोस्त बन गए थे। इकठे बाहर चले जाते। कभी कहीं किसी दुकान पर बैठ कर चाय कॉफ़ी पीते, कभी स्टैला पीने लगते और कभी कुछ खाने लगते। पैसे हम अपने अपने खर्च करते थे। कभी हम विंटर पैलेस के किसी अन्य रेस्टोरेंट में खाने बैठ जाते। कभी हम हाल की एक तरफ बनी बार में बैठ जाते। कहते थे कि इस होटल में पांच छै और छोटे छोटे रेस्टोरेंट थे लेकिन हम ने तो तीन ही देखे थे, और भी होंगे लेकिन हम उन में गए नहीं। दो तीन दिन ऐसे ही लुक्सर में घुमते, सैर करते करते कई दिन ख़तम हो गए। जब हमें पता चला कि हम में से दो मिआं बीवी सुबह पिरामिड देखने कायेरो जा रहे थे, तो मुझे याद आया कि मैं तो सिर्फ आया ही पिरामिड देखने के लिए था, लुक्सर का तो मुझे इतना गियान ही नहीं था, तो मैंने जसवंत को बोला, ” जसवंत ! इजिप्ट में आये और पिरामिड भी देख कर नहीं गए, यह बात तो अधूरी ही रह गई, हमारा आना तो कोई माने नहीं रखता “, जसवंत भी सोचने लगा और बोला, ” मामा ! बात तो तुमारी सही है, चल अभी बाहर चलते हैं और पता करते हैं ” और उठ कर बाहर सड़क पर आ गए और एक ट्रैवल एजेंट के दफ्तर में घुस गए। हमें कुछ मालूम नहीं था कि लुक्सर से कायरो कितनी दूर था। जब हम ने उस एजेंट से बात की तो वोह बोला,” अगर आपने ट्रेन में जाना है, तो हम तुम्हें सुबह चार बजे ट्रेन में बिठा देंगे और सुबह 9 बजे हमारा एजेंट आप को कायरो रेलवे स्टेशन पर मिल लेगा और आप को सब कुछ दिखा देगा “, जब हम ने बाई एअर का पुछा तो उस ने 140 ब्रिटिश पाउंड बताये, जिस में हमारा सारे दिन का खाना, स्फिंक्स और पिरामिड के टिकट भी शामल थे। फैसला करके हम बता देंगे कह कर हम बाहर आ गए और आगे चल पड़े। कुछ दूर जा कर एक और ट्रैवल एजेंट का दफ्तर था, जिस के बाहर बोर्ड लगा हुआ था JOLLY TRAVELS , कोई चालीस वर्षय का युवक काउंटर पर बैठा था। एक गोरा गोरी उस से बात कर रहे थे और हमारे जाते ही वोह उठ कर चले गए। जब उस से बात की तो उस ने बताया कि यह गोरा गोरी जो अभी उठ कर गए हैं, वोह भी सुबह कायरो जा रहे थे और उन से उस ने 125 ब्रिटिश पाउंड चार्ज किये थे लेकिन हम इंडियन होने की वजह से वोह115 पाउंड चार्ज कर लेगा। जसवंत ने दो सीटें बुक करने के लिए उसी वक्त उस को कह दिया क्योंकि यह कीमत हम को कोई बुरी नहीं लगी थी । वोह इजिप्शियन हमें कहने लगा कि उस गोरा गोरी को हम मत्त बताएं कि उस ने हम से 115 पाउंड चार्ज किये थे। हम ने पैसे दे दिए और उस ने उसी वक्त टिकटें प्रिंट करके हमें पकड़ा दीं और हमें बताया कि उन का ड्राइवर सुबह छै बजे हमारे होटल से हमें ले कर एअरपोर्ट पर छोड़ आएगा। ऐरोप्लेन सात बजे चलेगा और साढ़े आठ कायरो एअरपोर्ट पर पहुँच जाएगा। एयरपोर्ट से बाहर आते ही उन का ड्राइवर और एक गाइड लड़की हम को सैर कराएगी। दुपहर को लन्च के बाद हमें काइरो मयूज़ियम ले जायेगी। शाम को आठ बजे फ्लाइट वापस चलेगी और दस साढ़े दस बजे वापस विंटर पैलेस में आ जाएंगे।
टिकटें ले कर हम दफ्तर से बाहर आ गए और घूमने चल पड़े। सारा दिन ऐसे ही बीत गया। जसवंत बोला कि आज शाम को सन सैट ( डूबता हुआ सूर्य) देखेंगे। शाम को हम दरिया नील पर आ गए और एक ऊंची जगह खड़े हो गए। सूर्य तो पहले भी डूबता होगा लेकिन हम ने कभी धियान ही नहीं दिया था कि इस में ख़ास बात किया थी। हम सूर्य की ओर देखने लगे। धीरे धीरे यह नीचे आ रहा था। जसवंत बोला, ” अब नज़र टिकाये रखना “, हम धियान से देखने लगे। यूँ ही सूर्य कुछ नीचे आया, एक दम जैसे स्लो मोशन में फ़ुटबाल गिरता है, नीचे आ कर छपन हो गया। हम हैरान हो गए। यह भी एक अध्भुत नज़ारा देखा। इस के बाद याद नहीं कहाँ कहाँ घूमें लेकिन रात को होटल में आ कर दोस्तों के साथ गप्पें हांकने लगे। रात का खाना यहीं इसी विंटर पैलेस के एक रैस्टोरैंट में खाया और जल्दी ही अपने रूम में आ कर सो गए क्योंकि सुबह हम ने जल्दी उठना था।
सुबह पांच बजे उठे। स्नान आदी से फ़ार्ग हो कर कपडे बदले और नीचे आ कर लाउंज में ड्राइवर का इंतज़ार करने लगे। कोई दस मिंट बाद ही ड्राइवर लाउंज में आ गया और हमारी पगड़ीआं देख कर हमें आने को बोला। गाड़ी उस की बाहर पोर्च के नज़दीक खड़ी थी और हम उस में विराजमान हो गए और गाड़ी एअरपोर्ट की ओर रुखसत हो गई। अभी अँधेरा ही था और सड़क खाली थी, जल्दी ही एअरपोर्ट पर पहुँच गए और टैक्सी ड्राइवर हमें छोड़ कर वापस चले गया। चैक इन पर गए, लगेज तो हमारे पास है नहीं था, बस टिकटें दिखा कर दूसरे यात्रियों के साथ कुर्सीयों पर बैठ कर ऐरोप्लेन का इंतज़ार करने लगे । क्योंकि वहां सभी अरबी थे और ज़्यादा लोग अरबी ड्रैस गैलाबाया पहने हुए ही थे, कुछ यों ही हमारी तरह ट्राउज़र कमीज में भी थे। कुछ देर बाद वोह गोरा गोरी भी आ गए, जिन्होंने हमारे साथ ही जाना था, हम ने उन्हें हैलो बोला और बताया कि हम भी उन के साथ जा रहे थे, वोह खुश हो गए। वक्त पर ऐरोप्लेन लैंड हो गया और कुछ देर बाद हम इस में विराजमान हो गए। ऐसा ऐरोप्लेन हम ने पहली दफा देखा था क्योंकि भीतर यह बहुत बड़ा हाल लग रहा था, कुछ ही मिनटों में प्लेन ऊपर उठ गया और हवा से बातें करने लगा,इजिप्शियन एअरहोस्टेस जल्दी जल्दी चाय सर्व करने लगीं। चाय पीते पीते और बातें करते हुए पता ही नहीं चला,कब हम कायरो लैंड होने को थे। पहले अरबी भाषा और फिर इंग्लिश में अनाउंस हो गया कि हम एअरपोर्ट पर पहुँचने वाले थे। लैंड होने पर जब हम अराइवल में पहुंचे तो देखा, बाहर लौ हो चुक्की थी। गेट से बाहर आये तो एक आदमी बाहर हमारा इंतज़ार कर रहा था। उस ने बताया कि वोह हमारा ड्राइवर था। कई टेड़े मेढ़े रास्तों से होते हुए हम बाहर सड़क पर आ गए। सड़क के दुसरी ओर उस की बड़ी सी टैक्सी खड़ी थी। उस के साथ सड़क पार करके हम उस की टैक्सी में बैठ गए। अब वोह टैक्सी ड्राइवर हमारी गाइड की इंतज़ार करने लगा। कोई पंदरां मिंट में ही एक युवा लड़की जो कोई होगी पचीस तीस की, आते ही उस ने हम सब को हैलो बोला। लड़की बहुत स्मार्ट और जीन पहने हुए थी, सिर्फ सर पर ही हिजाब था। अब इस गाड़ी में मैं जसवंत, गोरा गोरी और पांचवीं वोह गाइड थी।
सब से पहले गाड़ी एक होटल के नज़दीक आ कर खड़ी हो गई। होटल के भीतर गए तो डाइनिंग हाल में कुछ बिदेशी लोग ब्रेकफास्ट खा रहे थे, जो शायद इस होटल में ही ठहरे हुए होंगे। सामने एक बहुत बड़े टेबल पर सब तरह के खाने पड़े थे। उस लड़की ने हम को ब्रेकफास्ट कर लेने को कहा तो हम भी प्लेटें ले कर मन पसंद के खाने प्लेट में रख कर एक टेबल पर आ गए। ब्रेकफास्ट ले कर हम वापस गाड़ी में बैठ गए। कोई बीस मिंट में गाड़ी एक जगह आ गई, यहां पहले ही बहुत गाड़ीआं और कोचें खड़ी थीं। हमारी गाइड लड़की ने टिकट लिए और एक गेट में से दुसरी ओर दाखल हो गए। अब हमारे सामने ही सफ़िंक्स दिखाई दे रहा था। लड़की बताने लगी कि इस स्फिंक्स की टोटल लंबाई 200 फुट, चौड़ाई 50 फुट और ऊंचाई 65 फुट है। इस का नाक 5 फुट चौड़ा था लेकिन कुछ लोग कहते हैं कि यह नाक नेपोलियन बोनापार्ट की एक तोप में से निकले एक गोले के कारण टूट गया था, कुछ कहते हैं कि तुर्की के हमलों के दौरान यह टूट गया था। कुछ भी हो, यह स्फिंक्स एक ही पत्थर से बना हुआ एक शेर है जो लाइम स्टोन से बना हुआ है, जिस का मुंह किसी फैरो का है जो सर पर शाही लिबास पह्ने हुए है और शेष धड़ शेर का है, इस शेर के पंजे ही पचास फुट लंबे हैं। यह सफ़िंक्स या शेर रेत के नीचे दब्बा हुआ था और 1907 में इस को रेत में से निकाल कर साफ़ किया गया था, किसी अँगरेज़ या फ्रैंच ने ही किया होगा जो मुझे पता नहीं।
आज भी याद करके मैं सोचता हूँ कि यह शेर जो एक ही पीस से बना हुआ है, इतना भारी पत्थर कैसे यहां लाया गया होगा। यह सफ़िंक्स बनाने का मकसद उस लड़की ने बताया था कि यह शेर, दुसरी तरफ बनी पिरामिड की रखवाली करता था क्योंकि यह उन लोगों का विशवास था, क्योंकि इस शेर की दुसरी ओर ही तीन पिरामिड दिखाई देती हैं, जिन में सब से बड़ी पिरामिड एक फर्लांग पर ही है। अब हम इस स्फिंक्स के इर्द गिर्द ऊंचे ऊंचे खंडरात पे चढ़ गए, और भी बहुत टूरिस्ट थे जो कई देशों से आये हुए थे और सभी कलिक्क कलिक्क फोटो ले रहे थे। उस लड़की ने यह भी बताया था कि इस स्फिंक्स के नाक को सीमेंट से रिपेअर करने की कोशिश भी की गई थी लेकिन यह सीमेंट कुछ देर बाद उखड़ कर नीचे गिर गया, शायद इस लाइमस्टोन को रिपेअर करना मुश्किल था। साढ़े चार हज़ार साल पुराना यह शेर बहुत सा घिस गया है लेकिन अभी भी उसी तरह खड़ा लोगों को हैरान कर रहा है। आज जब मैं यह लिख रहा हूँ तो मन में सोच आती है कि कुछ वर्ष ही पहले मैं कैसे इन दीवारों पे चढ़ कर भागता फिरता फोटो लेता था, इसी लिए तो इस हॉलिडे का इतना मज़ा आया था। खैर, इस बात का मुझे कोई रंज भी नहीं है क्योंकि यह ज़िन्दगी का एक हिस्सा ही है, कभी कभी मिरेकल भी हो ही जाते हैं, किया मालूम, I MIGHT SEE LIGHT AT THE END OF THE TUNNEL .
बहुत देर हम यहां रहे और फोटोग्राफी करते रहे। बाहर आ कर फिर गाड़ी में बैठ गए। गोरा बोल रहा था कि यह सिवेलाइज़ेशन कितनी एडवांस थी और उस वक्त हम अँगरेज़ तो जंगलों में ही रहते थे। उस की इस बात पे हम सब हंसने लगे, बात भी ठीक ही थी, इतने बड़े बड़े मौनूमैंट देखे और आज की सायेंस भी उस समय की टैक्नॉलोजी को समझ नहीं सकी। गोरी बोल रही थी कि ममियों के शरीर पर लिपटी पट्टीयां आज भी ऐसे लग रही हैं, जैसे आज ही लिपटी गई हों, IT IS AMAZING, गाड़ी चली जा रही थी और बृक्षों के बीच में से पिरामिड का ऊपरला हिस्सा नज़र आने लगा था और हमारी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। स्फिंक्स से पिरामिड कोई दूर नहीं थी और जल्दी ही हम वहां पहुँच गए। ड्राइवर ने गाड़ी पार्क की और हमारे सामने ही बड़ी पिरामिड दिखाई दे रही थी, कुछ दूरी पर दो पिरामिड और थीं । दरअसल सब इस, पिरामिड को ही देखने आते हैं क्योंकि यह सब से बड़ी है और इस एरिए को गीज़ा की पिरामिड या खूफू की पिरामिड बोलते हैं। लड़की ने टिकट लिए और कुछ कुछ इतिहास बताने लगी जो ज़्यादा तो याद नहीं लेकिन उस का यह बताना ही काफी था कि यह पिरामिड 4000 साल पहले बादशाह खूफू और उस की पत्नियों के लिए बनाई गई थी। वैसे तो और भी 130 पिरामिड बनी थीं, ज़ियादा ढह ढेरी हो गई हैं लेकिन सब से ऊंची और अभी तक अछि हालत में यह पिरामिड ही है। इस पिरामिड के नीचे बेस की चौड़ाई 16 फ़ुटबाल ग्राउंडों जितनी है और यह पिरामिड की शक्ल बनती हुई ऊपर जा कर तीखी नोंक की तरह ख़तम होती है और इस की ऊंचाई 450 फ़ीट है। इस पर 25 लाख पत्थर लगे हुए हैं और इन पत्थरों का एक एक का भार दो से ले कर तीस टन तक है। इस को बनाने में 23 साल लगे थे और हर रोज़ एक लाख आदमी काम करते थे। कुछ इतिहासकार कहते हैं कि इस पर सभी काम करने वाले गुलाम थे लेकिन कुछ यकीन रखते हैं कि सब को बराबर तान्खुआह मिलती थी लेकिन अभी तक यह बहस का विषय है। यह भी हैरानी की बात है कि बहुत पत्थर असवान से लाया गया था जो यहां से कई सौ किलोमीटर दूरी पर है। ज़्यादा इतिहासकार यह ही विश्वास करते हैं कि इन पत्थरों को दरिया नील के जरिए ट्रांसपोर्ट किया गया था। उस समय कश्तियाँ कितनी बड़ी होंगी और कश्तियों पर रखा कैसे गया होगा, यह अभी तक कोई समझ नहीं पाया।
हमारे सामने कई लोग ऊटों की सवारी कर रहे थे, जगह जगह इजिप्शियन ऊँट ले कर घूम रहे थे क्योंकि उन का यह धंदा था, यात्रियों से वोह कमाई कर रहे थे। पिरामिड को धिआन से हम ने ऊपर देखा, ऊपर का कुछ हिस्सा ऐसे लगता था जैसे इस पिरामिड को पहले सभ तरफ प्लस्तर किया गया हो। मैंने ही उस लड़की को इस के बारे में पुछा तो उस ने बताया कि बिलकुल, यह पहले प्लस्तर ही किया हुआ था और इस पलस्तर की मोटाई तकरीबन आठ फ़ीट थी और सारी पिरामिड इस तरह दिखाई देती थी कि पॉलिश की हुई दिखाई देती थी और चमकती थी। इस बड़ी पिरामिड के दुसरी ओर जो दो और पिरामिड हैं, यह सितारों की दिशा के अनुसार बनी हुई हैं लेकिन इस पर अभी सांईसदान उलझे हुए हैं कि यह किस फार्मूले के तहत बनाई गई थीं।
कुछ आगे गए तो बहुत पत्थर जो कभी इस पिरामिड का हिस्सा ही थे, जगह जगह बिखरे पड़े थे। लड़की ने हमें कहा कि हम इस पिरामिड के बीच जा सकते हैं लेकिन दो महीने तक इस के भीतर जाना मना कर दिया जाएगा क्योंकि नीचे जा कर कुछ लोग बीमार पढ़ जाते हैं। टिकट उस लड़की ने हमें दे दिए और हम इस पिरामिड के भीतर जाने के लिए तैयार हो गए। पिरामिड के दुआर पर जो बहुत ही छोटा सा था, एक इज्प्शिन बैठा टिकट ले रहा था। टिकट हम ने उस को दिए और एक दूसरे के पीछे झुके झुके चलने लगे। यह सुरंग मुश्किल से पांच पांच फ़ीट दोनों तरफ चौड़ी होगी। दोनों तरफ पकड़ पकड़ कर जाने के लिए कोई तीन चार इंच चौड़ी लकड़ी की रेलिंग लगी हुई थी जिस को पकड़ पकड़ कर हम आगे बढ़ रहे थे। धीमी धीमी रौशनी थी लेकिन भीतर जाते हुए हम डरने लगे थे कि हम ने कोई गलती तो नहीं की थी, क्योंकि यह सुरंग इतनी स्टीप थी कि 45 डिग्री ऐंगल लग रही थी। झुक झुक कर नीचे की ओर जाना खतरनाक लग रहा था। कोई सौ गज़ से भी ज़्यादा हम आगे बढ़ते रहे और आखर में एक कमरा था, जो होगा कोई पंदरां फ़ीट चौड़ा और इतना ही लंबा। दीवारों पर कोई पेंटिंग नहीं थी। यहां ही बादशाह खूफू का खज़ाना रखा हुआ था जिस का मुझे पता नहीं कि यह अब कहाँ रखा हुआ है। पांच मिंट ही यहां हम ठहरे और वापस ऊपर की ओर चढ़ने लगे। ऑक्सीजन की कमी महसूस हो रही थी और साँसें घुटी घुटी महसूस हो रही थी। जब हम ऊपर आये तो ताज़ा हवा से राहत मिली। बाहर आये तो जसवंत ने लड़की से पुछा कि वहां तो खाली कमरा था। लड़की ने बताया कि इस में से ही आगे बहुत सुरंगे हैं, जो बन्द की हुई हैं। इन में किंग्ज़ चैंबर ऊपर है और कुईनज़ चैंबर नीचे है। इस सुरंग का किस ने पता लगाया था, हमे उस लड़की से पूछना भूल गया। बाहर आते ही हम पिरामिड के सभी ओर जाने लगे। जब चक्र ख़तम हो गया तो हम पिरामिड पे चढ़ने लगे क्योंकि बड़े बड़े पत्थर लगता है उसी तरह ही एक दूसरे के ऊपर रखे हों। और लोग भी चढ़ रहे थे और एक दूसरे की फोटो ले रहे थे। हम ने भी कुछ फोटो लीं और कुछ देर बाद नीचे आ गए। ऊँट की सैर हम ने नहीं की क्योंकि हमें डर लग रहा था।
काफी देर हम घुमते रहे और फिर हमें फोटो लेने का एक नया आइडिया मिला, जो वहां कुछ लोग कर रहे थे। काफी दूर जा के मैंने अपना एक हाथ नीचे और दूसरा हाथ कोई एक फुट की दूरी पर ऐसे किया कि पीछे पिरामिड ऐसे दिखाई देती थी जैसे मैंने पिरामिड को अपने दोनों हाथों से पकड़ा हुआ है, और ऐसे ही फोटो खींच ली, फिर इसी तरह जसवंत ने खिंचवाई। हमें भूख लगी हुई थी और हमारी गाइड हमें होटल की ओर ले चली। चलता. . . . . . . . . . .