गीत/नवगीत

माँ !

माँ तुम क्या जानो तुम क्या हो

सब सो जाएँ तब सोती हो
सबसे पहले उठ जाती हो
रखती हो सभीका ध्यान
सभी की सेवा में जुट जाती हो

मेरी छोटी खुशियों के लिए
जिसने सब सुख को त्यागे हों
सुनकर के माँ की हुंकारें
दुःख दुर दूर ही भागे हों

मेरे जीवन बगिया में माँ
तुम एक चमकता सूरज हो
कारि अंधियारी रातों में
सद्पथ दिखलाता चंदा हो

है करुणा भरी निगाहों में
दया प्रेम स्नेह का सागर हो
मुझ पर सर्वस्व लुटाया है
भरी ममता की तुम गागर हो

तेरे चरणों के बदले में है
स्वर्ग हमें मंजूर नहीं
तेरे चरणों में जन्नत है
हमें जाना है अब दुर नहीं

माँ तुम क्या जानो तुम क्या हो

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।