कविता : गीली लकड़ी
कर खुद को…
नज़रों से ओझल
क्या दिल से दूर हो जाओगे ?
पाओगे जब…
खुद को तन्हा,
संग अपने मुझको पाओगे ! !
तेरे प्रेम की खुशबू में लिपटी
बिन तेरे सुलगूँ, लकड़ी की तरह
अतीत की यादें…
जब सुलगाएगी मुझको
खुश क्या तुम तब रह पाओगे ?
कुर्बानी दे जज्बातों की,
तन्हाई का आँचल पाओगे !
गीली लकड़ी…
सुलगे जैसे
सुलगते खुद भी रह जाओगे ! !
अंजु गुप्ता