गीत : निठल्लेपन में सोना बंद करो
(1000₹- 500₹ की नोटबंदी पर देशवासियों से भ्रष्टाचार के खिलाफ छिड़ी निर्णायक जंग में भरपूर सहयोग की अपील करती मेरी नयी कविता)
देशवासियों आज निठल्लेपन में सोना बंद करो
लाइन में जो खड़े हुए हो इसका रोना बंद करो
झुंझलाहट में इस निर्णय पर आँख दिखाना बंद करो
मोदी को ईमान धरम का पाठ पढ़ाना बंद करो
नोट पुराने बंद हुए हैं, किस्मत खुलने वाली है
आज़ादी पर लगी हुई थी कालिख धुलने वाली है
ये निर्णय सचमुच भारत का रंग बदलने वाला है
हर पैसे के लेनदेन का ढंग बदलने वाला है
ये निर्णय दहशतगर्दी की जेब काटने वाला है
दाऊद के कुनबे की सब चमड़ी उतारने वाला है
ये निर्णय निर्धन के धन को संबल देने वाला है
और ठिठुरती भारत माँ को कंबल देने वाला है
ये निर्णय 70 सालों की लूट रोकने वाला है
ये निर्णय चोरों को रातों रात ठोंकने वाला है
ये निर्णय हर छल को नानी याद दिलाने वाला है
ये निर्णय तो कालेधन की जड़े हिलाने वाला है
चोर लुटेरे परेशान,जो छिपे रहे थे खादी में
जिनका ऊंचा योगदान है भारत की बर्बादी में
सदा चुनावो में जिनकी दौलत का दम ख़म रहता था
अरबों का काला धन जिनके घर में हर दम रहता था
चारा खाने वालों की चमड़ी में भुस भर डाला है
मोदी ने झटके में सबका मुँह काला कर डाला है
होने थे जो खर्च रुपैये, मुर्गा,पउआ, अद्दी में
चला गया सब काला पैसा आज कबाड़ा रद्दी में
इससे बेहतर और भला क्या नीति बनाते मोदी जी
या केवल पहले जैसी सरकार चलाते मोदी जी
2जी 3 जी घोटालों से पेट तुम्हारा नही भरा?
दिल्ली में इटली वालों से पेट तुम्हारा नही भरा
झाडू के ठेकेदारों से पेट तुम्हारा नही भरा?
चचा-भतीजे, परिवारों से पेट तुम्हारा नही भरा?
जन्मदिवस पर चंदा देखा, पेट तुम्हारा नही भरा?
राजनीति का धंधा देखा पेट तुम्हारा नही भरा
अब तो आँखे खोलो भैया, कब तक पिसते जाओगे
कब तक यूँ ही दबे रहोगे एड़ी घिसते जाओगे
अब निर्णायक जंग छिड़ी है, कदम बढ़ाना तुमको है
मोदी ने तो धनुष दिया है, तीर चढ़ाना तुमको है
दिक्कत हो तो इक सैनिक का कठिन ठिकाना याद करो
घास चपाती खाने वाला राजा राणा याद करो
बरसाती कीड़े बढ़ जाएँ, बल्ब बुझाना पड़ता है
मातृभूमि की खुशहाली में कष्ट उठाना पड़ता है
कवि गौरव चौहान कहे, सौगातें आने वाली हैं
बाद अँधेरी रात, चांदनी रातें आने वाली हैं
न्याय मिला है उस धन को जो खून पसीने वाला था
ये निर्णय, लगता है छप्पन इंची सीने वाला है
— कवि गौरव चौहान