सामाजिक

शिक्षा के अधिकार व शिक्षा सुधार

बचपन से सुनते आ रहे हैं कि छात्र ही देश के भविष्य हैं और उनके अन्दर ज्ञान का दिप जलाने वाले शिक्षक गोविंद से भी श्रेष्ठ व प्रथम पूज्य हैं। पर आप से जो कोई पूछे कि क्या देश के ये श्रेष्ठ मूर्तिकार अपना दायित्व इमानदारी से निभा रहें हैं ? तो सायद आपका जवाब ‘ना’ ही होगा । पर ऐसा क्यों ? जब हमारे समाज में शिक्षक को गोविंद से श्रेष्ठ माना गया है; जब उन्हे इतना अधिक वेतन दिया जाता है, उन्हे सबसे अधिक छुट्टीयां मिलती है कम परेशानी और जोखीम में काम करने का अवसर मिलता है तो फिर क्यों वे छात्रों के रुप में देश के भविष्य को अंधकार में ढकेल रहें हैं ।

आज कोई भी व्यक्ति अपने बच्चों को सरकारी विद्यालयों में पढ़ाना नहीं चाहता है । गरीब से गरीब आदमी भी अपने बच्चों को प्राइवेट स्कुलों में पढ़ाने की जुगत में लगा रहता है । पर प्राइवेट स्कुलों में बच्चों को पढ़ाना इतना आसान नहीं होता । प्राइवेट स्कुलों के मासिक शुल्क आज के महंगाई के इस जमाने में आम आदमी के बजट में नहीं आते । महंगी किताबें, अलग-अलग किस्म के यूनिफर्म, ट्यूसन शुल्क के साथ ही स्कूल बसों के किराये तक सभी इतने महंगे हैं कि आम आदमी की कमर टुट जाती है । और आप अगर इनसब का जुगार कर भी लेते हो तो भी नाम दाखिले के लिए जरूरी आसमान छूते शुल्क और कभी-कभी तो छोटे-मोटे स्कुलों में भी एडमिशन के लिए मोटे चंदे की मांग आपके सपनों को तोड़ने के लिए काफी हैं । अर्थात अधिकतर प्राइवेट स्कुलों में चंदे के बिना दाखिला नहीं मिलता । तो ऐसे में बेचारा गरीब आदमी जाये कहां? क्या गरीब आदमी को सपने देखने का हक नहीं ? क्या उसे गरीबी की बेड़ियों को तोड़कर बाहर निकलने का अधिकार नहीं?

सोचिये, अगर गरीब को सही शिक्षा नहीं मिलेगी तो वो क्या करेगा ? आज शिक्षा के अभाव में ही हमारे देश के युवाओं का चारित्रिक व नैतिक पतन हो रहा है । देश में इस कदर गुंडागर्दी व आतंकवाद के मामले बढ़ रहे हैं । समाज का नैतिक पतन हो रहा है और इनसब की जिम्मेदार है आज की शिक्षा व्यवस्था । याद रखिये कि शिक्षा ही हमें नैतिक तौर पर सशक्त बनाती है । हमें जीवन जीने के तरीके सीखाती है । देश और समाज के लिये कुछ कर गुजरने का जज्बा जगाती है । इसीलिये शिक्षा पाने को अधिकार के रुप में स्वीकृती दी गई है । शिक्षा को अधिकार की श्रेणी में रखा गया है । पर यह हमारे बच्चों का, हमारे समाज का दुर्भाग्य है कि आज शिक्षा देने के नाम पर छात्रों को ठगा जा रहा है । सरकारी स्कुल-कॉलेजों के शिक्षक मोटी पगार लेते हैं,कई तरह की सुविधाएं प्राप्त करते हैं,पर चंद शक्षकों को छोड़ दिया जाये तो अधिकतर शिक्षक बस नाम की ड्यूटि करते हैं । वे हर घड़ी बस अपनी ड्यूटि से भागने के रास्ते तलासते हैं । वे मजबूरी में स्कुल तक पहुंच तो जाते हैं पर कक्षा में पहुंचकर वे बस अपनी हाजिरी पूरी करते हैं । वे जरा भी इस बात का ख्याल नहीं रखते कि जिन्हे वे पढ़ा रहें हैं वे बच्चे वास्तव में कुछ सीख भी रहें या नहीं । शिक्षक कक्षा में पहुंचकर अपनी ड्यूटि करते हैं और कक्षा में बैठे बच्चे अपनी मनमानी करते हैं । और इस तरह से देश के सबसे जिम्मेदार नागरिकों की अवहेलना की वजह से देश का भविष्य अंधकार की गर्त में डूबता जा रहा है । और इस ठगी के कारोबार में उन शिक्षकों का कुछ नहीं बिगड़ता । क्योंकि अधिकतर शिक्षकों के बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते हैं । महंगे शिक्षकों से ट्यूसन लेते हैं । और अगर आप जरा सा गौर करें तो गुपचुप तरीके से चल रही यह पूरी घटना ये प्रमाणित कर देगी कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर बहुत ही खराब है । याद रखिये कि कोई भी व्यापारी अपने दुकान में रखे किसी भी खराब वस्तु का सेवन खुद नहीं करता है, तो फिर इन मालदार सरकारी बाबूओं को क्या ठेका लगा है जो वे खुद की खराब सेवा का शिकार अपने परिवारवालों को बनने दें ।

याद रहे कि इस व्यवस्था के जिम्मेदार सिर्फ सरकारी विद्यालय के शिक्षक ही नहीं हैं बल्कि इसके लिए कहीं ना कहीं हम,आप और वे सारे अभिभावक जिम्मेदार हैं जिनके बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं । क्योंकि अपने बच्चों का सरकारी स्कुल में दाखिला कराने के बाद हम अपने कर्तव्यों का ईतिश्री समझ लेते हैं । हमें लगने लगता है कि दाखिले के बाद अब हमारे बच्चों का पूरा दायित्व सरकारी विभागों का है । जबकी वास्तव में यह हमारा कर्तव्य है कि हम लगातार अपने बच्चों से उनके पढ़ाई के बारे में बात करें । उनके शिक्षकों के व्यवहार व शिक्षा प्रदान करने के तौर-तरीकों के बारे में पूछें । नियमीत तौर पे उनके कॉपीयों की जांच करें और बच्चों द्वारा दिये गए शिकायतों को लेकर प्रधानाध्यापक से बात करें । शिक्षकों की अवहेलना की शिकायत संबधित लोगों से करते हुये शिक्षा के स्तर में सुधार के लिए बाकी के अभिभावकों से बात करें और अपने बच्चों की अधिकारों का हनन होने से बचायें । पर इसके उलट सरकारी शिक्षा व्यवस्था से असंतुष्ट होने पर हम इन झंझटों से पीछा छूड़ाते हुये अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में डालकर उन्हे एक अस्वस्थ्य प्रतियोगिता के माहौल के हवाले कर देते हैं । जिससे हमारे बच्चे शिक्षित होने के बजाय उच्च डिग्रीधारक व्यक्ति के रुप में नैतिकता विहीन जीवन यापन करने को अभ्यस्त हो जाते हैं । समाज में फैले अनैतिक व्यभिचारों का मूल कारण कहीं ना कहीं हमारी शिक्षा पद्धति भी है । हमारी शिक्षा व्यवस्था हमारे बच्चों को नैतिक शिक्षा देने में असफल रही है । भारत को लम्बे समय तक गुलाम बनाये रखने के उद्देश्य से ब्रिटीश शिक्षा विशेषज्ञ लॉर्ड मैकले द्वारा थोपी गई शिक्षा नीति आज भी हमारे गुरुकुल व्यवस्था को ठेंगा दिखा रही है । आज भी हमारे युवा पीढ़ी को मानसिक तौर पे पंगू बना रही है । और इसका उदाहरण है देश में तेजी से बढ़ती बेरोजगारी और आपराधिक घटनाएं । देश में बेलगाम होते बलात्कार,चोरी-डकैती व हत्या-हिंसा की घटनाएं हमें बारबार सचेत कर रहीं हैं । हमें इसारे कर रहीं हैं कि अब शिक्षा नीति पे भी पुणः विचार करने का समय आ गया है ।

यह समय की मांग है कि अब हम अपने अधिकारों का लाभ उठायें और ये दुनीया का दस्तूर है कि अपने अधिकारों का लाभ उठाने के लिए हमें अपने कर्तव्यों का भी पालन करना होगा । साथ ही हमें सरकारी विद्यालयों की शिक्षा व्यवस्था को दुरूस्त करने हेतु भी प्रयासरत होना होगा । वैसे भी यह युग इंटरनेट का है । आज मोबाइल फोन के जरिए इंटरनेट लोगों की मुठ्ठी में कैद हो गया है । मोबाइल इंटरनेट के इस दौर में हम सहज ही अपनी बात हजारों,लाखों लोगों तक पहुंचा सकते हैं । और सबसे गंभीर बात यह है कि अभी के समय में केंद्र तथा अधिकतर राज्य सरकारें इंटरनेट के जरिये लोगों की परेशानीयों को सीधे तौर पे सुन रहें हैं । सैंकड़ों लोग अपनी परेशानीयों की शिकायत सीधे संबन्धीत विभाग के मंत्रीयों से कर रहें हैं और उन्हे अच्छा रेसपॉन्स भी मिल रहा है । ऐसे में अभिभावकों को बिना किसी दबाव के सरकारी शिक्षकों व शिक्षा अधिकारीयों की शिकायत सीधे शिक्षा मंत्री से करनी चाहिये । जो स्कुल इंस्पेकटर विद्यालयों की नियमीत निगरानी नहीं करतें और विद्यालयों को भगवान भरोसे चलने के लिए छोड़ देते हैं बिना किसी असमंजस के उनकी शिकायत शिक्षा मंत्री से की जानी चाहिए । क्योंकि विद्यालय परिदर्शकों का काम ही है विद्यालयों की नियमीत निगरानी करना । साथ ही अभिभावकों को स्कूल के गवर्निंग बॉडी के सदस्यों से भी मिलकर नियमीत तौर पर विद्यालय से जुड़ी संसाधनों की व्यवस्था का निवेदन करना चाहिये और अगर वे इस बारे में सजग नहीं होते तो इसकी शिकायत शिक्षा विभाग के अधिकारियों से करनी चाहिये । याद रहे कि देश की शिक्षा व्यवस्था को सुधारने का जिम्मा हम सबको मिलकर उठाना होगा ।

सरकार तथा व्यक्तिगत विद्यालयों को भी शिक्षक नियुक्ति की प्रक्रिया में बदलाव लाना होगा । शिक्षक नियुक्ति के दौरान लिखित अथवा मौखिक परीक्षा लेने से बेहतर है की अकाडेमिक तौर पे योग्य उम्मीदवारों का चुनाव कर उनसे कम से कम हफ्ते भर का प्रैक्टिल तौर पे टेस्ट लिया जाना चाहिये । टेस्ट के दौरान उनपे खास नजर रखा जाना चाहिये और अंत में शिक्षक नियुक्ति के लिए विद्यालय के बच्चों की राय भी ली जानी चाहिए । उनसे पूछा जाना चाहिए कि किस शिक्षक की क्लास उन्हे सबसे अच्छी लगती है ? कौन उन्हे सबसे बेहतर तरीके से समझाता है । उनकी भाषा व व्यवहार के बारे में भी बच्चों से जानकारी लेनी चाहिए । इससे उन्हे उनके पसंद का व योग्य शिक्षक मिल जाएगा जो उनके भविष्य को संवार कर देश के भविष्य को अंधकार से उजाले की ओर ले जाएगा ।

प्राइवेट स्कुलों में भी अधिकतर शिक्षक ट्यूसन के चक्कर में विद्यालय में बच्चों को सही शिक्षा देने से बचते हैं । कभी-कभार बच्चों पे शारीरिक व मानसिक अत्याचार भी करते हैं । ऐसे में अभिभावकों को सजग होकर अपने बच्चों के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए । हमें व्यक्तिगत तौर पर कोशिस करनी होगी कि हमारे बच्चे शिक्षा ग्रहण के बाद एक अच्छे इंसान बन सकें । नौकरी के पीछे भागने के बजाय आत्मनिर्भरशील बनें औरों को रोजगार दे सकें । याद रखिये कि ये हमारी शिक्षा ही है जो हमें दस्यु रत्नाकर या बाल्मिकी बनाती है ।

मुकेश सिंह
सिलापथार (असम)
मो०- 9706838045

मुकेश सिंह

परिचय: अपनी पसंद को लेखनी बनाने वाले मुकेश सिंह असम के सिलापथार में बसे हुए हैंl आपका जन्म १९८८ में हुआ हैl शिक्षा स्नातक(राजनीति विज्ञान) है और अब तक विभिन्न राष्ट्रीय-प्रादेशिक पत्र-पत्रिकाओं में अस्सी से अधिक कविताएं व अनेक लेख प्रकाशित हुए हैंl तीन ई-बुक्स भी प्रकाशित हुई हैं। आप अलग-अलग मुद्दों पर कलम चलाते रहते हैंl