कविता

उम्मीदें वो लाया है

छप्पन इंच के सीने ने
ये कौन सा करतब दिखाया है ।
देखो आज पहली बार
वृद्ध मां के खाते में भी
ढाई लाख का रकम आया है ।
खुश है वो बहुत सुनकर
बेटे ने कुछ भिजवाया है ।
उस मां को क्या पता
बेटे ने कौन सा गुल खिलाया है ।
जिसने हर सुख अपना बेटे के लिए छोड़ा था
उसके लिए मां का प्यार बस एक फर्ज कोड़ा था ।
कभी कुछ मांगती भी तो नहीं थी वो
उसके पास जैसे सब था
बस बेटे से मिलने के सिवा
उसे कुछ बचा ही नहीं था लेने को ।
उसके हृदय की गहराईयों में
दर्द का एक सैलाब था,
अब तो उन बूढ़ी आंखों में
बस बेटे के हाथों अंतीम विदाई का ख्वाब था ।
जिसे ऊंगली पकड़कर सिखाया था चलना
वो चला गया है इतना आगे
कि अब उसका दिल नहीं चाहता मां से मिलना ।
पर फिर भी बस बेटे की बातें करती है
आज भी हर घड़ी वो उसीके लिए ही मरती है ।
भूला है बेटा अब घर-आंगन अपना
टूटा है चुपके से आज एक बूढ़ी मां का सपना ।
पर फिर भी चेहरे पे उसके मुस्कान एक छाया है
खोये बेटे को पाने की उम्मीदें वो जो लाया है ।
जानें छप्पन इंच के सीने ने
ये कौन सा करतब दिखाया है ।
देखो आज पहली बार
वृद्ध मां के खाते में भी
ढाई लाख रूपया आया है ।

— मुकेश सिंह
सिलापथार (असम)
09706838045

मुकेश सिंह

परिचय: अपनी पसंद को लेखनी बनाने वाले मुकेश सिंह असम के सिलापथार में बसे हुए हैंl आपका जन्म १९८८ में हुआ हैl शिक्षा स्नातक(राजनीति विज्ञान) है और अब तक विभिन्न राष्ट्रीय-प्रादेशिक पत्र-पत्रिकाओं में अस्सी से अधिक कविताएं व अनेक लेख प्रकाशित हुए हैंl तीन ई-बुक्स भी प्रकाशित हुई हैं। आप अलग-अलग मुद्दों पर कलम चलाते रहते हैंl