कविता

सियासत लाशों पर


कुछ दिन  से ये क्या हो रहा,

मौंतो पर  कविता  गढ रहा।

कहे   प्रदीप   क्या   माजरा,

लाशों पे सियासत बढ़ रहा।।

 

सेना  सीमा  पर   लड़ती  है,

दिल्ली में सियासत बढ़ती है।

सैनिक  सीमा  पर  मर जाए,

नेता   सोए   ही   रहते   हैं।।

 

लाशों  पर   लाश  गिरे  चाहे,

रक्षक  की  गर्दन  रेती जाए।

चुप  रहते  हैं  तब  भी  द्रोही,

जब – जब  आतंकी  हर्षाए।।

 

जगे   नींद   से,  टूटी   चुप्पी,

कायर  के विष  पी जानें पर।

दौड़ा  कर आतंकी ठुके जब,

पाक में घुस कर मारने पर ।।

 

सीमा    पर   सैनिक   मरता,

वो  कीड़ा   मकोड़ा   लगता।

विष ग्रहण किया जो स्वार्थी,

वो  महापुरुष   है   दिखता ।।

 

किसी  शहीद  के घर  जाकर,

आँसू  ये   पोंछ   नहीं   पाए ।

मतलब    के   मारे   महाचोर,

घड़ियाल   अंश  के  है जाए।।

 

मैं      प्रदीप   ये    कहता   हूँ,

पीड़ा से कटु शब्द भूल गया ।

वरना  इस  छलनी  छाती  से,

अंगार   बहाना    चाहा    था।।

 

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।।प्रदीप कुमार तिवारी।।

करौंदी कला सुलतानपुर

7537807761

प्रदीप कुमार तिवारी

नाम - प्रदीप कुमार तिवारी। पिता का नाम - श्री दिनेश कुमार तिवारी। माता का नाम - श्रीमती आशा देवी। जन्म स्थान - दलापुर, इलाहाबाद, उत्तर-प्रदेश। शिक्षा - संस्कृत से एम ए। विवाह- 10 जून 2015 में "दीपशिखा से मूल निवासी - करौंदी कला, शुकुलपुर, कादीपुर, सुलतानपुर, उत्तर-प्रदेश। इलाहाबाद मे जन्म हुआ, प्रारम्भिक जीवन नानी के साथ बीता, दसवीं से अपने घर करौंदी कला आ गया, पण्डित श्रीपति मिश्रा महाविद्यालय से स्नातक और संत तुलसीदास महाविद्यालय बरवारीपुर से स्नत्कोतर की शिक्षा प्राप्त की, बचपन से ही साहित्य के प्रति विशेष लगव रहा है। समाज के सभी पहलू पर लिखने की बराबर कोशिस की है। पर देश प्रेम मेरा प्रिय विषय है मैं बेधड़क अपने विचार व्यक्त करता हूं- *शब्द संचयन मेरा पीड़ादायक होगा, पर सुनो सत्य का ही परिचायक होगा।।* और भ्रष्टाचार पर भी अपने विचार साझा करता हूं- *मैं शब्दों से अंगार उड़ाने निकला हूं, जन जन में एहसास जगाने निकला हूं। लूटने वालों को हम उठा-उठा कर पटकें, कर सकते सब ऐसा विश्वास जगाने निकला हूं।।* दो साझा पुस्तके जिसमे से एक "काव्य अंकुर" दूसरी "शुभमस्तु-5" प्रकाशित हुई हैं