चार मुक्तक
आने वाला आयेगा ही
जाने वाला जायेगा ही
किस्मतवाला सब पा लेगा
बदकिस्मत चिल्लायेगा ही
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चंदन है तो महकेगा ही
शोला है तो दहकेगा ही
जिसकी जो मर्ज़ी हो करले
पंछी है तो चहकेगा ही
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पत्ता है तो टूटेगा ही
बंधन है तो छूटेगा ही
दिल की दौलत लाख सम्हालो
पर कोई तो लूटेगा ही
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प्राण अगर हैं डोलेगा ही
जब तक स्वर है बोलेगा ही
पंछी पिंजरा तोड़ न पाये
पर कोशिश भर खोलेगा ही
— डॉ.कमलेश द्विवेदी