गीतिका/ग़ज़ल

आओ ज़रूर

कांटे दामन में छुपा कर आओ, पर आओ ज़रूर,
मेरी यादें दिल से मिटाकर आओ, पर आओ ज़रूर।

मेरी निगाहें तेरी खुशबू भी पहचानती है मेरे हमदम,
हिजाब में चेहरा छुपा कर आओ, पर आओ ज़रूर।

लौट जाना मेरी आँखों में फरेब दिखे तो मेरे सनम,
दिया इश्क़ का बुझाकर आओ, पर आओ ज़रूर।

तुम्हारी तीर नजरों से घायल होने का शौक नहीं,
नजरों को अपनी झुकाकर आओ,पर आओ ज़रूर।

वफ़ा की उम्मीद तुमसे हरगिज नहीं है मेरे यार,
बेवफाई की कसमें खाकर आओ, पर आओ ज़रूर।

ख़ुशी-ख़ुशी लौट जाना मेरा वजूद नेस्तनाबूद करके,
इश्क़ के उसूल भुलाकर आओ, पर आओ ज़रूर।

शर्म ओ हया के शज़र पर ख़िज़ा का असर बाकी है,
नैनों की हया गिराकर आओ, पर आओ ज़रूर।

विनोद दवे

नाम = विनोदकुमारदवे परिचय = एक कविता संग्रह 'अच्छे दिनों के इंतज़ार में' सृजनलोक प्रकाशन से प्रकाशित। अध्यापन के क्षेत्र में कार्यरत। विनोद कुमार दवे 206 बड़ी ब्रह्मपुरी मुकाम पोस्ट=भाटून्द तहसील =बाली जिला= पाली राजस्थान 306707 मोबाइल=9166280718 ईमेल = davevinod14@gmail.com