लघुकथा

साक्षात लक्ष्मी

ऊषा जिदंगी के पचास बसंत देख चुकी थी, कभी उसने किसी से कोई शिकायत नहीं की , बच्चों को अच्छे संस्कार देने के लिए कभी कभी कठोर निर्णय भी लिये । इन सब बातों के दौरान ऊषा निजी जिंदगी में उडान भरना भूल गई थी ।दुनिया जहाँ सूट सलवार और पार्लर में वक्त बिताती थी वहीं ऊषा घर में नाती पोतों के लिए स्वेटर बुनती थी, यह सब देखकर पति खीजते थे, समझाते ,”ऊषा, बेटी और बहू कितना ध्यान रखती हैं खुद का , तुम भी वक्त से पहले ढलने लगी हो थोडा ध्यान तुम भी दो।”
दिवाली का दिन , ऊषा बाजार जाने का कह शाम होने तक नहीं आई तो घर वाले बेहद चिंतित होने लगे ? धीरे धीरे बहू बेटे ने पूजा की सारी तैयारी कर ली और बच्चे ऊषा के लिए बिफर गये तभी अचानक दरवाजे पर घंटी बजी
बच्चों ने दरवाजा खोला तो पहचान नहीं पाये तभी घर के सभी सदस्य दरवाजे पर पहुंचे तो अवाक रह गए और देखा तो दुल्हन की तरह सजी धजी ऊषा बेहद सुंदर लग रही थी , सबको अचम्भे से ऊषा की तरफ देखते हुए पति हरीश बहू से बोले, ” सौम्या आज साक्षात लक्ष्मी घर चलकर आई हैं , आरती का थाल सजा कर लाओ।”
संयोगिता शर्मा
सेंट लुइस (यू एस ए)

संयोगिता शर्मा

जन्म स्थान- अलीगढ (उत्तर प्रदेश) शिक्षा- राजस्थान में(हिन्दी साहित्य में एम .ए) वर्तमान में इलाहाबाद में निवास रूचि- नये और पुराने गाने सुनना, साहित्यिक कथाएं पढना और साहित्यिक शहर इलाहाबाद में रहते हुए लेखन की शुरुआत करना।