गीत/नवगीत

गीत : मैं देश जगाने निकला हूँ

यह भारत की धरती है, यह सिंह सवारी करती है
एक हाथ रख तिरंगा, यह खड्ग भी धारण करती है
साफा इसका केशरिया, यह हरी ओढ़नी रखती है
गीता इसका धर्मग्रन्थ, यह कुरान भी पढ़ती है
मंदिर मस्जिद आँखें इसकी, गुरूद्वारे शीश नवाती है
हिन्दू मुस्लिम बेटे इसके, यह सबको गले लगाती है
भारत माँ के महिमा को मैं, गा गा के सुनाने निकला हूँ
मैं देश जगाने निकला हूँ …….. 2

मुगलों से ले कर गोरों तक, सबने हम पर था राज किया
सही गुलामी सहस्र वर्ष, हंसकर सब अत्याचार सहा
ज़र, ज़मीन सब लूट लिया, माँ बहनों पर जुल्म हज़ार हुआ
इज्जत कि रक्षा के हेतु, जौहर हंसकर स्वीकार किया
लूटने हमें जो आये हमने, उनका भी सत्कार किया
स्वाभिमान संग गौरव भी, हथेली पे सजा के सौंप दिया
उसी जौहर कि ज्वाला को, मैं फिर सुलगाने निकला हूँ
मैं देश जगाने निकला हूँ…………… 2

कितने वीर सपूतों ने, न्यौछावर अपना प्राण किया
देश की आज़ादी खातिर, सर्वस्व अपना बलिदान किया
कितनों नें फांसी को चूमा, कितनें निगल गए अंगारों को
कैसे हमनें भुला दिया, आज़ादी के दीवानों को
आज़ाद भगत सुखदेव तिलक, और बोस जैसे मतवालों को
क्यों हम भूले बैठे हैं, शहीदों की इस क्रांति को
छलनी किया था गोरों नें, हर क्रांतिकारी छाती को
राष्ट्रप्रेम की वही अलख, मैं फिर से जगाने निकला हूँ
मैं देश जगाने निकला हूँ ………… 2

सुलग रहा है देश मेरा, अलगाववाद के नारों से
रोज़ ही जो भीड़ जाते हैं, जन्नत के पहरेदारों से
घायल देश का मस्तक है, इन पत्थरबाज विचारों से
ख़ाली हो गई घाटी पूरी, निर्दोष केशर के किसानों से
वक़्त अभी है संभल जाओ, अलगाववाद के आकाओं
परखो ना मेरे जज्बातों को, औकात पे अपने आ जाओ
अपने बच्चों को भेज विदेश, मासूमों को बहकाते हो
अपनी दूकान चमकाने को, महिलाओं बच्चों को ढाल बनाते हो
हिन्दू जो कहीं फिर बिगड़ गया, गर अपनी जिद्द पे अड़ ही गया
झेलुम को लहू से भर देंगे, घाटी लाशों से पट देंगे
बंज़र केशर के खेतों को, मैं फिर महकानें निकला हूँ
मैं देश जगाने निकला हूँ………. 2

लश्कर हिज्बुल से हाथ मिला, पकिस्तान भी आँख दिखाता है
अपने ही पैतृक घर पर ये, आंतकी क़हर फैलाता है
नापाक इरादों की खातिर, मासूमों पर हमले करता है
खुली चुनौती करता हूँ, आतंकी सिपहसालारों से
निर्दोषों को छोड़ के भीड़ लो, मेरे शरहद के चौकीदारों से
चुन चुन कर गोली मारेंगे, नापाक तेरे मंसूबो पर
तिरंगा फिर हम लहराएंगे, लाहौर कराची सूबों पर
माँ का दूध अब उबल रहा, बन रक्त हमारी नाढ़ी में
हर आतंकी मारा जायेगा, चाहे कहीं छिपा हो खाड़ी में
कश्मीर का राग़ भुला दो तुम, एक पग भी ज़मी न अब देंगे
जो आँख इधर फिर उट्ठी तो, पूरा पकिस्तान भारत में मिला लेंगे
यह नया भूगोल इस दुनिया को, मैं आज पढ़ाने निकला हूँ
मैं देश जगाने निकला हूँ …………. 2

संजय तिवारी

संजय तिवारी

नाम – संजय तिवारी माता – रामवती तिवारी पिता – वैद्यनाथ तिवारी जन्म - 12 अगस्त 1983 जन्म स्थान - रhवा, मध्यप्रदेश वर्तमान पता – पूर्वी परासी, पोस्ट – रेनुसागर, ज़िला – सोनभद्र (यू. पी.) पिन – 231218 फ़ोन न. – 9838133132 इ मेल – leosanju.83@gmail.com शिक्षा – कानपूर विश्वविद्यालय से अंग्रेजी से स्नातक व्यसाय – सामाजिक उद्यमी प्रकाशन विवरण – • अंग्रेजी नावेल WOMANIA के लेखक और Sanmati Literary Awards 2016 के द्वारा Best Debut Writer 2016 से सम्मानित • “पुष्पगंधा” साझा काव्य संग्रह में रचनाएँ प्राकशित • लखनऊ से प्रकाशित मासिक हिंदी पत्रिका “साहित्यगंधा” में रचनाएँ प्रकाशित • “एक लम्हा ज़िन्दगी” साझा काव्य संग्रह, जिसका विमोचन जल्दी ही दिल्ली में होगा