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आत्मज्ञान परम कल्याण का मार्ग

ज्ञान चाहे कोई भी हो वही वास्तविक शक्ति है.वास्तविक वस्तु उसे कहते है जो सदैव रहने वाली हो .संसार में हर वस्तु एक विशिष्ठ काल के बाद नष्ट हो ही जाती है. धन खर्च हो जाता है, तन जर्जर होकर शक्तिहीन हो जाता है, साथी और साथीदार छूट जाते हैं. केवल ज्ञान ही एक ऐसा शाश्वत तत्व है, जो कहीं भी किसी भी अवस्था और किसी काल में मनुष्य के साथ ही रहता है ,साथ नहीं छोड़ता. कोई भी कार्य ज्ञान बिना संभव नहीं है .जीवनयापन के लिए ,धन कमाने के लिए भी ज्ञान चाहिए .लेकिन ये ज्ञान भौतिक जीवन का ज्ञान है इस ज्ञान से भौतिक उपलब्धि तो हो जाएगी ,लेकिन क्या आत्मा इससे तृप्त होती है ? भौतिक सुखों की प्राप्ति होंने के बाद भी कुछ कमी रह जाती है और वो कमी होती है “आत्मज्ञान की”.
जब तक मानव को ये ज्ञान नही होगा की ‘वह कौन है ,उसका इस मानव जीवन से क्या प्रयोजन है’ तब तक वह सबकुछ मिलने के बाद भी अंतरात्मा से अस्वस्थ ही रहेगा .वास्तविक ज्ञान तो आत्मज्ञान ही होता है .वह ज्ञान मिलने पर वह स्थिर बुद्धि वाला हो जाता है .जिसे पाकर मनुष्य अन्धकार से प्रकाश की ओर, मृत्यु से अमृत की ओर, असत्य से सत्य की ओर, अशाँति से शाँति की ओर और स्वार्थ से परमार्थ की ओर उन्मुख होता है.सच्चे ज्ञान में सदा सन्तोष होता है और लिप्साजन्य आवश्यकतायें समाप्त हो जाती है . उसकी प्राप्ति तो आत्मज्ञता, आत्म-प्रतिष्ठा और आत्म-विश्वास का ही हेतु होती है.जिस ज्ञान से इन दिव्य विभूतियों एवं प्रेरणाओं की प्राप्ति नहीं होती, उसे वास्तविक ज्ञान मान लेना बड़ी भूल होगी. जीवन की भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के उद्देश्य से जो ज्ञान प्राप्त किया जाता है उससे जीवन पूर्ति ही होगी आत्म संतुष्टि नही होगी .अत: आत्मज्ञान प्राप्त करना जीवन का परम लक्ष्य होना चाहिए . और इसे ही वास्तविक ज्ञान कहते है .इस प्रकार का वास्तविक ज्ञान किसी प्रकार का भौतिक ज्ञान न हो कर शुद्ध आध्यात्मिक ज्ञान होता है .साँसारिक कर्म करते हुए भी उसे प्राप्त करने का उपाय करते ही रहना चाहिये. फिर इसके लिये स्वाध्याय कर सकते है , सत्संग अथवा चिन्तन मनन कर सकते है , आराधना, उपासना अथवा पूजा-पाठ कर सकते है . तन, धन, अथवा जन की शक्ति वास्तविक शक्ति नहीं है. आत्मज्ञान की प्राप्ति ही मनुष्य का वास्तविक लक्ष्य है. वास्तविक ज्ञान आध्यात्मिक ज्ञान ही है और वही मनुष्य की सच्ची शक्ति भी है, जिसके सहारे वह आत्मा तक और आत्मा से परमात्मा तक पहुँचकर उस सुख, उस शाँति और उस सन्तोष को प्राप्त कर सकता है. जिसको वह जन्म-जन्म से खोज रहा है किन्तु पा नहीं रहा है. वास्तविक आत्मज्ञान के बिना न तो जीवन में सच्ची शान्ति मिलती है और न ही परकल्याण प्राप्त होता है.

 

प्रतिभा देशमुख

श्रीमती प्रतिभा देशमुख W / O स्वर्गीय डॉ. पी. आर. देशमुख . (वैज्ञानिक सीरी पिलानी ,राजस्थान.) जन्म दिनांक : 12-07-1953 पेंशनर हूँ. दो बेटे दो बहुए तथा पोती है . अध्यात्म , ज्योतिष तथा वास्तु परामर्श का कार्य घर से ही करती हूँ . वडोदरा गुज. मे स्थायी निवास है .