गीतिका/ग़ज़ल

पत्थरों के शहर में भी

पत्थरों के शहर में भी, कच्चे मकान बनाये रखना,
ताजी हवा के वास्ते घर में, रोशनदान बनाये रखना।
पत्थरदिल लोगों को अक्सर, मुर्दा दिल भी कहते हैं,
मुर्दा दिल बस्ती में भी, प्यार की आस बनाये रखना।
यूँ तो ‘मैं और मेरे’ लिये, कलह होने लगी घर घर में,
जो टूटती डोर को थामें, उन हाथों को बनाये रखना।
उडने लायक हों जब बच्चें और पंख मजबूत हो जायें,
बदलते दौर की जरूरत, नया आशियां बनाये रखना।
माना कि हो गये हो बूढे उम्र से, पैरों में भी थकान है,
फिर भी कमा लाना कुछ, निज अहमियत बनाये रखना।
सोचते रहे ताउम्र, किस तरह ‘कीर्ति’ मिले जग में,
भूलकर ख्वाब सारे, अपनी इज्जत बनाये रखना।
अ कीर्तिवर्धन