गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

पुराने नोट बन गये खोट अब तो
कुर्ते की ज़ेब दे रही चोट अब तो

झूँठी देश-परिवेश की बातें सभी
ज़ेह़न में केवल बैठा वोट अब तो

कमाया है धन घपलों से जिन्होंने
हो रहे मुखर उनके होठ अब तो

नोट के बदले वोट लेने वाले सभी
मल रहे तेल कसरहे लंगोट अब तो

जो विरोधी थे कभी एक दूसरे के
सेक रहे एकही तबे पर रोट अब तो

हस्र काले धन का देख-देख करके
‘व्यग्र’ भी हुआ है लोट-पोट अब तो

विश्वम्भर पाण्डेय ‘व्यग्र’

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र' कर्मचारी कालोनी, गंगापुर सिटी,स.मा. (राज.)322201