लघुकथा

कुंडली

राधेश्याम ने अपनी लड़की सलोनी की शादी के लिए राजेश का चयन कर लिया था । सलोनी जहां तीखे नैन नक्श और गौर वर्ण की आकर्षक नव युवती थी वहीँ राजेश कहीं से भी उसके काबिल नहीं था  । सामान्य कदकाठी का राजेश ऊँचे खानदान का एक मात्र वारिस और रईस था ।
पंडित जी ने राजेश का रिश्ता राधेश्याम से बताते हुए राजेश और सलोनी की कुंडली भी मिलवाई । कुछ गणना करके पत्रा देखते हुए पंडितजी ने खुश होकर बताया ” अरे राधेश्याम जी ! क्या कुंडली मिली है ! दिल खुश हो गया । अरे अपनी इतनी बड़ी जिंदगी में ऐसी कुंडली मिलते हुए कभी नहीं देखी   । पुरे चौंतीस गुण मिल रहे हैं भैया ! इससे ज्यादा सिर्फ भगवान राम और सीता जी के ही गुण मिले थे । बिटिया राज करेगी राज । ”
शक्ल सूरत से नापसंद होने के बावजूद इतना अधिक गुण मिलने की वजह से राधेश्याम ने इस रिश्ते के लिए हामी भर दी ।
सलोनी यह सुनकर असहज हो गयी थी । एक पल के लिए उसने सोचा ‘ थोड़ी सी ख़ामोशी जिंदगी भर पछताने के लिए काफी है ‘ । पंडितजी से बोली ” पंडितजी ! राम और सीता जैसा ही सुख मिलेगा न ? वैसे ही चौदह साल वनवास और फिर लंका से आकर अग्नि परीक्षा । और अंत में राम द्वारा सीताजी का त्याग । वैसे ही राज करुँगी न मैं ? ”
राधेश्याम की आँखें खुल गयीं और उन्होंने पंडितजी को  विदा करते हुए रिश्ते के लिए मना कर दिया ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।