संस्मरण

मेरी कहानी 199

रात भर सो कर सर कुछ हल्का सा हो गया। बैड के साथ जो स्पैशल हैंडल लगाया गया था, उस को मैंने दोनों हाथों से पकड़ा और कुछ कुलवंत ने सहारा दिया और मैं बैड पर बैठ गया। वैसे मेरे दर्द इतनी नहीं होती थी, सिर्फ उठने बैठने से ही टांकों की बजह से दर्द होती थी। धीरे धीरे उठ कर मैं वाकिंग फ्रेम की मदद से टॉयलेट तक चले गया। ब्रश किया और मुंह हाथ धोया। टॉयलेट सीट काफी ऊंची फिट की गई थी, जिस से मुझे सीट पर बैठना आसान हो गया था । टॉयलेट रूम से फ़ार्ग हो कर कुलवंत की मदद से धीरे धीरे नीचे आ गया। यह पहला दिन था और मेरे बैड रूम जाने और नीचे उतरने से मुझे कुछ हौसला हो गया कि अब मुझे कोई तंगी नहीं आएगी। जख़्म ठीक होने के लिए तो बहुत वक्त की जरूरत थी और इस का मुझे गियान था। ब्रेकफास्ट, किया लेना है, कुलवंत ने पुछा था। मैंने हंस कर कहा था कि बहुत देर के बाद घर का खाना नसीब हुआ है, इस लिए दही के साथ पिआज और जीरे वाला पराठा हो जाए। कुलवंत किचन में पराठे बनाने लगी और मैं पास ही अपनी सीट पर बैठ गया। पराठे बनते देख मुंह में पानी आ रहा था। एक पराठा बना कर कुलवंत ने प्लेट में रख कर मेरे सामने रख दिया और साथ ही दही और प्लेट में एक तरफ आम का अचार रख दिया, क्यों कि कुलवंत को पता था कि आम का अचार मेरा पसंदीदा अचार है। हस्पताल से आ कर घर के इस पहले ब्रेकफास्ट का मज़ा मुझे अभी तक याद है। इतना मज़ा आ रहा था कि इस अकेले दही पराठे के खाने से मुझे छत्ती प्रकार के भोजन का आनंद आ रहा था। हस्पताल में एक से बढ़ कर एक खाने थे लेकिन हमारे इस देसी भोजन की कोई रीस नहीं है। खाना खा कर धीरे धीरे कुलवंत के सहारे मैं सिटिंग रूम में आ कर सोफे में बैठ गया।
बाद में कुलवंत ने भी ब्रेकफास्ट लिया और मैं टीवी पे न्यूज़ देखने लगा। कोई गियारा बजे नर्स आ गई। आते ही मुस्करा कर उस ने गुड़ मॉर्निंग बोला और अपना सारा सामान नीचे रख दिया, जिस में दुआइआं और अन्य चीज़ें थीं। let me see your bandage कह कर उस ने धीरे धीरे मेरे पेट पर से प्लास्तर उतारना शुरू कर दिया। थोह्ड़ा थोह्ड़ा खून अभी भी निकल रहा था। वोह जखम साफ़ करने लगी और मैं अपने पेट की बुरी हालत को देख रहा था। नर्स को हंस कर मैंने बोला, ” my belly button is on the wrong side ! “, वोह भी हंस पडी और बोली ” you dont have any belly button ” , कोई आधा घंटा वोह अपना काम करती रही, फिर उस ने नया प्लास्टर लगा दिया। फिर उस ने बहुत से फ़ार्म भरे और इन को एक फ़ाइल में रख कर वोह फ़ाइल हमें दे दी और बाई बाई कह के चले गई। कोई एक घंटे बाद एक और नर्स आ गई, जिस ने मुझे नहलाना था। वाकिंग फ्रेम से मैं धीरे धीरे शावर रूम की ओर जाने लगा। नर्स साथ साथ जा रही थी। शावर रूम में पहुँच कर उस ने मेरे कपडे उतारने में मेरी मदद करनी शुरू कर दी। पहली दफा किसी नर्स के सामने कपडे उतारना मुझे मुश्किल परतीत हो रहा था और झिजक और शर्म महसूस हो रही थी लेकिन इन नर्सों को मेरा सलाम ! dont be shy कह कर उस ने मेरे सारे कपडे उतार दिए और धीरे धीरे मुझे उस चेअर पर बिठा दिया जो एक नर्स छोड़ गई थी। चेअर बहुत अछि थी, नर्स ने मेरे दोनों पैर सपोर्ट के लिए चेअर के पैडलों पर रख दिए और शावर हैड से मेरे ऊपर पानी डालने लगी। मेरे हाथ में उस ने साबुन पकड़ा दिया और कहा कि मैं खुद साबुन लगाऊं क्योंकि यह भी एक्सरसाइज़ का ही एक हिस्सा होता है। जितना मुझ से हो सकता था, मैंने किया, शेष नर्स ने कर दिया और मुझे अछि तरह नहला के,बाद में तौलिये के साथ शरीर पर से पानी सूखा दिया और मुझे कपडे पहना दिए। smart man कह कर धीरे धीरे वोह मुझे सिटिंग रूम में ले आई। फिर उस ने वोह फ़ाइल मांगी और उस पर कुछ लिखती रही और बाई बाई कह कर चले गई।
अब यह डेली रूटीन हो गया था लेकिन आज मेरे मन में बहुत विचार आ रहे हैं कि ज़माना कैसे बदलता है। कोई ज़माना था, जब यही गोरीआं कभी हमारे देश में मेम साहब कहलाया करती थी और हम अंग्रेजों के गुलाम थे। यही गोरे कभी हमारे ही देश में अपने घरों के नज़दीक हिंदुस्तानिओं को आने नहीं देते थे, अपने बच्चों की परवरिश के लिए आया रखी होती थीं। हर अँगरेज़ के कई कई हिंदुस्तानी नौकर हुआ करते थे। यहां तक कि कई अमीर गोरे तो इंग्लैंड को आते समय हिंदुस्तानी नौकर भी ले आते थे। पहले पहल जब हम आये थे तो हमारे खाने से यह लोग नफरत करते थे। हमारे खानों की खुशबू इन को बदबू लगती थी। हम को सीधे कह देते थे कि ” you smell garlic ” और आज यही गोरे कहते हैं कि लसुन के बहुत फायदे हैं। हमारे होटलों में अब खाना खाते हैं। समोसे कबाब तो बहुत पसंद करते हैं। बहुत दफा हम ने अपने घर में अँगरेज़ लोगों से कई काम करवाये और यह लोग चिकन मांग लेते थे और कुलवंत उन को चिकन करी और नान खिलाती थी और साथ में मसाले वाली चाय। लवली लवली करते थैंक यु बोलते थे। आज अँगरेज़ लड़कियां हमारे लड़कों से शादीआं कर रही हैं और हमारी लड़कियां भी अँगरेज़ लड़कों से शादीआं कर रही हैं। मेरे बहुत दोस्त थे, जिन्होंने अँगरेज़ लड़कियों से शादी की हुई थी। मैं अपने दोस्तों से सवाल पूछता रहता था कि किया यह लड़कियां हमारे भारती खाने पसंद करती थीं ! तो सभी यही बताते थे कि उन की अँगरेज़ बीवीयां भारती खाने हमारे औरतों से भी बड़ीआ बनाती थीं। वक्त किया किया हमें दिखा देता है। 54 साल से मैं इस देश में रह रहा हूँ और इस दौरान मैंने इतने बदलाव देखे हैं कि कभी कभी सोच कर हैरानी होती है। आज यही गोरे गोरीआं हमारे लोगों के लिए काम करती हैं, यहाँ तक कि हमारे घरों में सफाई का काम तक भी कर जाती हैं।
दूसरे दिन पहले एक नर्स आई, जिस ने मेरा जख्म साफ़ करके ऊपर प्लास्टर लगाया, फिर उस के जाने के बाद एक मेल नर्स जो एक वेस्ट इंडियन युवक था, ने मुझे नहलाया। फिर उस ने थोह्ड़ी थोह्ड़ी हाथ पाँव की एक्सरसाइज़ शुरू करा दी। यह एक्सरसाइज़ बहुत आसान थी, जैसे कुर्सी पर बैठ कर दोनों पैरों को ऊपर नीचे करना और हाथों को दोनों तरफ घुमाना। बस इतनी ही थी और उस ने मुझे तीन दफा रोज़ करने को कह दिया। दो हफ्ते इसी तरह चलता रहा। तीसरे हफ्ते नर्स ने मुझे पुछा कि क्या अब मैं अपने आप यह सब कर सकूँगा ! , उस ने यह भी बताया कि वोह दो हफ्ते ही मदद करते हैं, अगर जरुरत हो तो वे कुछ समय और दे सकते हैं। कुलवंत ने पंजाबी में मुझे कहा ” अब इन की कोई जरुरत तो है नहीं, खामखाह इंतज़ार करना पड़ता है, कह दो अब कोई जरुरत नहीं “, मैने धीरे धीरे नर्स को समझ दिया कि ” अब मैं ठीक हूँ ” , नर्स ने फ़ार्म भरके मेरे साइन कराये, एक पेपर अपने पास रखा और इस की कॉपी मेरी फ़ाइल में रख दी और कहा कि अब यह फ़ाइल मैं अपने घर रख लूँ। जाती हुई नर्स मुझे यह भी बता गई कि अब हस्पताल से मुझे सर्जन का खत, चैक अप्प के लिए आएगा। अब मैं अपने आप पर निर्भर हो गया, सिर्फ नहलाने में ही कुलवंत मेरी मदद करती थी। गर्मियों के दिन थे और एक दिन कुलवंत ने मुझे कहा कि मैं बाहर गार्डन में जाने की कोशिश करूँ। बड़ी मुश्किल से इंग्लैंड में धूप मिलती है और आज बहुत अच्छा दिन था। धीरे धीरे मैं वाकिंग फ्रेम धकेलता हुआ गार्डन में आ गया। बाहर आ कर आँखों में एक चमक सी आ गई। कई हफ़्तों से मैं पहले हस्पताल और फिर अपने घर के अंदर ही रहा था। कुलवंत ने एक चेअर पर कुछ गद्दे रख दिए थे ताकि सीट नरम रहे। पहले मैं कुर्सी पर बैठा, फिर गार्डन के फूलों की ओर नज़र दौड़ाई। यह मौसम फूलों का ही होता है, मैंने सभी पौदों की ओर देखा। तरह तरह के फूल जैसे मुझे, मेरे घर आने का सवागत कर रहे थे। फ्रूट के बृक्षों पर छोटे छोटे ऐपल, पेअर और चैरी फ्रूट मन लुभा रहे थे। छोटे से लान का घास कटा हुआ था और यह छोटा सा गार्डन बहुत नीट लग रहा था। कभी कभी मैं कुर्सी से उठता और कुछ कदम चल कर बार बार चारों ओर फूलों को निहारता। कुछ दूर एक गोरे ने अपने गार्डन में तितलियां रखी हुई थीं, उन में कुछ उड़ कर हमारे गार्डन के फूलों पर बैठ जातीं। उन के रंग, उन के पैटर्न देख कर कुदरत की कला पर हैरानी होती। आज शाम तक हम गार्डन में ही बैठे रहे, यहां ही कुलवंत चाय बना कर ले आई। पोते भी स्कूल से आ गए थे और आते ही गार्डन में अपने फ़ुटबाल से खेलने लगे। संदीप जसविंदर भी काम से आ गए और शाम का खाना भी बना कर गार्डन में ले आये और गार्डन में ही खाया। सात बजे बच्चे अपने घर चले गए लेकिन हम 8 बजे तक बाहर बैठे रहे क्योंकि इन महीनों में देर रात तक लौ रहती है।
बाहर से सारे जखम सूख गए थे। एक दिन हस्पताल से खत आ गया। जसविंदर क्योंकि दो दिन काम से जल्दी आ जाती थी, इस लिए वोह मुझे हस्पताल ले गई। हस्पताल पहुँच कर जसविंदर मेरे लिए हस्पताल से एक वील चेअर ले आई और उस में मुझे बिठा कर सर्जन के कमरे के बाहर बैठ कर हम इंतज़ार करने लगे। ज़्यादा देर नहीं लगी और सर्जन की असिस्टैंट नर्स हमारे पास आ गई और हम को उस के पीछे आने को बोला। अंदर जा कर नर्स ने मुझे एक बैंच पर लेटा दिया। जसविंदर बाहर चले गई और मैं सर्जन की इंतज़ार करने लगा। कोई दस मिंट बाद ही सर्जन आ गया और आते ही उस ने जख्मों को अछि तरह हाथ से देखा और मुझे कह दिया कि अब बिलकुल ठीक है और दुबारा हस्पताल आने की मुझे कोई जरुरत नहीं थी। हम घर आ गए। वैसे तो जखम बाहर से अछि तरह सूख गए थे लेकिन ऐसे ऑपरेशन के बाद अंदर के जखम ठीक होने में कई साल लग जाते हैं। वैसे तो अब मुझे इस ऑपरेशन की कोई ख़ास तकलीफ नहीं है लेकिन अभी भी मेरा पेट वोह नहीं जो पहले था । पेट ऐसा है, जैसे दो हिस्सों को रस्सी से कस कर बाँधा गया हो। यह फीलिंग हर वक्त मुझे महसूस होती है। कुछ भी हो अब यह अपेंडिक्स हमेशा के लिए चले गया। यह अपेंडिक्स हर एक के पेट में होता है। यह करता कुछ नहीं है, यों ही बेकार वस्तू की तरह हर एक के पेट में पड़ा रहता है लेकिन जब यह गड़बड़ी पे आ जाता है, शरीर ज्वाला मुखी बन जाता है। वक्त पर पता लगने से इस का जल्दी ऑपरेशन हो जाता है और आज कल तो की होल सर्जरी से इस को काट कर निकाल दिया जाता है लेकिन अगर यह फट जाए और पता ना लगे तो बचना मुश्किल हो जाता है। भगवान् का शुक्र है कि मिसज़ रिखी ने सही अंदाजा लगा लिया था और वक्त पर मुझे हस्पताल भेज दिया। मिसज़ रिखी का धन्यवाद करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। उस ने एक दफा मेरी माँ जिस को हम बीबी कहते थे, को जब स्ट्रोक हुआ था तो हमें बचा लिया था क्योंकि बीबी का यहां कोई मैडीकल कार्ड बना हुआ नहीं था। मिसज़ रिखी ने हमारे लिए कुछ गलत काम करके हमें बचा लिया था, नहीं तो पता नहीं कितना बिल बनता, शायद हमारा घर भी विक जाता। मिसज़ रिखी के पति ने हमारी मदद करने से साफ़ इनकार कर दिया था। भला हो मिसज़ रिखी का, जिस ने हमें बचा लिया था। यह उस ने कैसे किया, आज तक मुझे पता नहीं। उस वक्त हमारे बहुत बुरे दिन थे और यहां के हमारे अपने भी हमारा साथ छोड़ गए थे। कहते हैं ना ” जिस का कोई ना हो, उस का भगवान् होता है “, मिसज़ रिखी के भेस में भगवान् ने हमारी मदद कर दी थी।
अब ज़िन्दगी फिर से पटरी पर आ गई थी। कुछ कुछ एक्सरसाइज़ मैंने शुरू कर दी थी लेकिन ज़्यादा करना अभी सेफ नहीं था। बहुत दफा कोई अछि आदतें हमारे बहुत काम आती हैं। मेरी एक्सरसाइज़ की आदत मुझे शुरू से ही थी। जितना भी रोज़ करूँ, एक दिन भी मिस हुआ तो सारा दिन मन में रहता है कि कोई बहुत जरूरी काम मिस हो गया। इसी आदत के कारण अभी तक ठीक जा रहा हूँ। कल ही बीबीसी पर एक खबर दिखा रहे थे कि बहुत लोग हैं जो बहुत दुःख झेल रहे हैं और वोह डाक्टर की मदद से अपनी ज़िन्दगी ख़तम करना चाहते हैं लेकिन यहां का कानून इस काम की इजाजत नहीं देता। स्विट्ज़रलैंड जैसे कुछ देशों में assisted suicide का कानून है। कई लोग जो तड़प तड़प कर जी रहे हैं, वोह अपनी मर्ज़ी से डाक्टरों से टीका लगा लेते हैं, जिस में मरीज़ को मरने के दौरान कोई तकलीफ नहीं होती। बीबीसी पर मेरी ही कंडीशन का एक गोरा दिखा रहे थे, जिस की हालत देख कर ही घबराहट होती थी। वोह असिस्टड सुसाईड करना चाहता था लेकिन कानून इजाजत नहीं देता लेकिन उस ने कोर्ट में अपील की हुई है और इस की बहस पार्लिमेंट में होगी कि ऐसे लोगों को आतमहतया की इजाजत मिलनी चाहिए या नहीं। यह खबर देख कर कुलवंत उठ कर मेरे गले लग गई और बोली, ” मैं आप को नमस्कार करती हूँ जो अपने लिए और हमारे लिए इतनी एक्सरसाइज़ की मिहनत करके अभी तक ठीक जा रहे हैं “, मैंने हंस कर कहा, ” मैं इस से भी अच्छा हो कर दिखाऊंगा “, फिर हम और बातें करने लगे।
कंपयूटर ने मेरे ज़िन्दगी ही बदल दी थी। शुरू से ही मेरी एक आदत यह रही है कि मेरा हर नई चीज़ को जान्ने की उत्सुकता होती है। कम्पयूटर पर हर सब्जैक्ट को मैं देखता, पड़ता। पूरा सब्जेक्ट मैंने कभी भी विस्तार से नहीं पड़ा। बस हर वक्त कुछ नया देखने की इच्छा होती थी। पंजाबी में इस को कहते थे, ” अग्गा दौड़, पिछा चौड़ “, यानी आगे आगे दौड़े जाना और पीछे को छोड़ देना। ना भी कुछ हासिल हो, वक्त का पता ही नहीं चलता था कि कैसे बीत गया। कुलवंत लगातार बोलती रहती थी, ” किहड़े वेले दे तुसीं बैठे हो, फिर कहना सर दुखदा “, कुलवंत सही थी, इस से मेरा सर बहुत दुखता था लेकिन कंपयूटर से उठ नहीं होता था। जब सर ज़्यादा दुखता तो मैं यू ट्यूब पर गाने सुनता रहता। गाने की तरफ होता तो यह उत्सुकता होती कि इंडिया में पहला गाना कब रिकार्ड हुआ और इस को गाने वाला कौन था। ज़ाकर नायक और तारक फतह को सुनता। जाकर नायक की हिन्दू धर्म की स्टडी को देख कर हैरान होता और यह भी समझता कि यह इंसान कितना हुशिआर है कि हर कोई लाजवाब हो जाता है। मैं समझता था कि यह इस्लाम के प्रचार का एक ऐसा ढंग है, जिस से बहुत लोग अपने अपने धर्म छोड़ कर इस्लाम में दाखल हो रहे थे। तारक फतह को सुनता तो वोह एक सच्चा मुसलमान लगता। आज तक पता नहीं कितने वैबसाइटस देख चुक्का हूँ लेकिन हूँ तो बस master of none .
बाहर तो मैं जा नहीं सकता, हाँ कभी कभी हस्पताल की अपॉएंटमेंट हो तो बेटा या जसविंदर ले जाती है। कोई एक साल बाद मैंने एक्सरसाइज़ को कुछ आगे बढ़ाया। एक दिन मैंने सोचा कि फिर से पहले वाली एक्सरसाइज़ शुरू करूँ जो ऑपरेशन से पहले मैं फ्लोर पर लेट के किया करता था। कुछ आसन किये और फिर पेट के बल लेट कर जो पहले मैं किया करता था, शुरू किया। कर तो मैंने लिया लेकिन बाद में मेरा ऑपरेशन फिर दर्द करने लगा और मेरा दिल कच्चा कच्चा होने लगा जैसे उलटी आणि हो। मैं डर गया और एक्सरसाइज़ बंद कर दी। दो दिन बाद मैं ठीक हो गया लेकिन मैंने ज़्यादा सख्त एक्ससाइज़ अभी छोड़ दी और आसान आसन करने लगा। मन चाहता था, और ज़्यादा करूँ लेकिन डर भी लगने लगता। अगर अपैंडिक्स की समस्या ना होती तो मैं एक्सरसाइज़ बहुत बड़ा देता। पेट के बल की एक्सरसाइज़ छोड़ के मैंने और आसन करने शुरू कर दिए, जिन में अभी तक थोह्ड़ी देर बाद एक नया आसन शुरू कर देता हूँ। जब करके हटता हूँ तो मन में एक संतुष्टता सी होती है। इसी तरह स्ट्रगल करते करते 2014 शुरू हो गया और साथ ही ज़िन्दगी का एक नया कांड शुरू हो गया। चलता . . . . . . . .