आइए बस चले आइए
इस तरह रूठ मत जाइए ।
आइये बस चले आइये ।।
आज तो जश्न की रात है ।
मत गिला तक जुबाँ लाइए ।।
टूट जाए न दिल ही मेरा ।
जुल्म इतना नहीं ढाइये ।।
बेगुनाही पे चर्चा बहुत ।
कुछ सबूतों से भरमाइये ।।
जो तरन्नुम में था मैं सुना ।
गीत फिर से वही गाइये ।।
हम गिरफ्तार पहले से हैं ।
मत रपट कोई लिखवाइये।।
है ग़ज़ल में मेरे तू ही तू ।
एक मिसरा तो पढ़वाइये ।।
हूँ तेरे हुस्न का आइना ।
देखकर कुछ संवर जाइए ।।
धूप का है इरादा बुरा ।
बन के काली घटा छाइए ।।
कुछ तो मजबूरियां थीं तेरी ।
बेवजह मत कसम खाइये ।।
यह मुनासिब कहाँ है सनम ।
जख़्म से दिल को बहलाइये ।।
— नवीन मणि त्रिपाठी