कवितागीत/नवगीत

कला आने लगी है

नज़्म

ज़ख़्मों से डर कर जीने में जीने का लुत्फ़ ही फ़ाख़्ता हो गया था,
ज़ख़्मों को मरहम बना लिया तो जीने की कला भी आने लगी है.

 

 

शेरों को समझने की कभी कोशिश ही नहीं की थी,
अब शेरों की गहराई में डूबकर उतराने की कला भी आने लगी है.

 

 

कविता लिखना तो दूर से पढ़ने से भी करता था किनारा,
अब कविता पढ़कर मौके पर चौका मारने की कला भी आने लगी है.

 

 

इंसानियत को समझा था मुंगेरी लाल का हसीन सपना
इंसानियत को करीब से देखा तो सपने देखने की कला भी आने लगी है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244