गीतिका/ग़ज़ल

गज़ल

लगता नहीं है आसां, मिलना हदे मंज़िल का।
किश्ती पे बैठकर भी, पाना हदे-मंज़िल का॥
चाहा था हमने मिलना, दीदार बस दिलबर का।
वो ही न मिल सका इक, ग़मे यार मुख़्तसर था॥
चाहत थी फूल मिलते, पाया मगर न उनको।
कांटे-ही-कांटे ही दिखे, गई आंख जिधर को॥
थी आरज़ू कि देखूं, जलवां धुले गगन का।
खुली आंख तो अंधेरा, सब ओर पुरनज़र था॥
थी प्यास दिल में पाऊं, हर शै में तुझको मालिक।
वो भी तो न हो सका है, मैं कैसे बताऊं हे ख़ालिक॥

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244