कविता

परिस्थितियां

चेहरे पर कई घाव देखे मैंने
परिस्थितियों के
अक्सर जिंदगियां मुस्कुराना
छोड़ देती हैं
मजबूरियां जब कंधे पर आ बैठती हैं
इतने भारी हो जाते हैं
कंधे की बोझ होने लगता है
और यह वजन का सिलसिला
कईयों की जिंदगी में रोज होने लगता है
टूटते देखा किसी को तो ये
अल्फाज बाहर निकल कर आए
क्यों ना उसकी मुस्कुराहट के लिए
यह दिल होले होले गाए
वक्त बुरा होता है
ना कि इंसान बुरा होता है
चेहरे की झुर्रियों ने बताया कि
कई दफा अकेले में
वो इंसान अधूरा होता है
सोचा जीने की राह दिखा दूं
तारों को पकड़ने की चाह दिखा दूं
कोशिश यही कि उन विकट
परिस्थितियों में भी जीना आ जाए
मुस्कुराकर जद्दोजहद वाली जिंदगी
का घूंट पीना आ जाए

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733