हास्य व्यंग्य

हो गया ना महिलादिवस ( एक व्यंग )

चलो महिला दिवस ख़त्म हो गया बधाइयों का सिलसिला भी ख़त्म हुआ अब किसी को कोई परेशानी नहीं होगी न उनको जो रोज महिला दिवस समझकर औरतों का तहेदिल से सम्मान करते हैं उनकी भावनाओं को ठेस नहीं लगेगी कि हम तो रोज ही करते हैं फिर आज का दिन ही क्यों । न ही उन महिलाओं को कोई दिक्कत होगी जो रोज जाने कैसे-2 सितम झेलती होंगी कभी सास के ताने तो कभी शराबी पति की लात क्योंकि दिवस मनाने बाद कुछ तो बदलाव हुआ होगा। वो महिलाएं भी रानी लक्ष्मीबाई सी लड़ेंगी जिनकी रोज ही उनके पति सोड़ सी भर देते हैं फिर चाहे गलती सब्जी में नमक भर की ही क्यों न हो। राह चलती लड़कियां भी बेफिक्र घूमेंगी कोई गन्दी नज़र उन्हें नहीं घूर रही होगी। और वो माँ जो बरसों से कोने में पड़ी है कल ही तो उसका बेटा वृद्धाश्रम गया था कुछ सेल्फियां लेने फेसबुक पर पोस्ट करने के लिए कि अपनी माँ के साथ-2 बेसहारा वृद्ध माओं के साथ मनाया महिलादिवस और देखिये उस पोस्ट पर हजारों की संख्या में लाइक कमेंट मिले। काम बोलता है भाई। और वो बहू भी आज थोड़ी राहत पा रही होगी जिसकी सास कल ही किसी मंच पर महिलादिवस के उपलक्ष्य में बेबस और लाचार औरतों को उनके हक़ समझाकर लौटी है अब वो अपनी बहू को कभी दहेज़ के लिए ताने न देगी और न ही कोई गलती होने पर अपनी बहू की माँ को गालियां देगी कि क्या सिखाया तेरी माँ रांड ने( सॉरी पर ऐसे ही गलियां मिलती हैं एक औरत को दूसरी औरत से) … किस्से लिखने बैठू तो शाम हो जायेगी बस इसी बात से खुश हूँ कि स्थितियां बदल रही हैं आज नहीं तो कल बदल ही जाएँगी। मंच और सभाओं से उठकर महिलाओं का सम्मान उनके घर तक पहुंचा दिया जायेगा और फिर किसी महिला को डरने, हिचकने, या मार खाने की जरुरत नहीं पड़ेगी। कोई मुन्नी आकर अपनी मालकिन को नहीं बताएगी कि मैडम कल रात मेरे मर्द ने मुझे बहुत मारा शराब के नशे में और बोला ले मना ले महिलादिवस। ले तेरा तौहफा। बड़ी आई हम मर्दों से बराबरी करने हमने अभी चूड़ियां नहीं पहनी हैं। ….. सोचने को बहुत कुछ है पर घड़ी की टिक-2 याद दिला रही है कि उठ जा अब वरना ऑफिस के लिए देर हो जायेगी… तो चलिए शुभ दिन हो आप सबका ।

प्रवीन मलिक

प्रवीन मलिक

मैं कोई व्यवसायिक लेखिका नहीं हूँ .. बस लिखना अच्छा लगता है ! इसीलिए जो भी दिल में विचार आता है बस लिख लेती हूँ .....