राजनीति

पारिवारिक विवाद में दफन पार्टी

पार्टी का नाम ‘समाजवादी’ होने के बाद भी मुलायम सिंह यादव और उनकी पार्टी का समाजवाद से कभी कोई लेना-देना था या है, ऐसा आरोप कोई नहीं लगा सकता। भले ही वे लोहिया के चेले होने का दम भरते हों और चटख लाल रंग की टोपी लगाते हों, लेकिन उनका ‘समाज’ केवल अपने परिवार या जाति तक सीमित रहा है, यह सभी जानते हैं। उत्तर प्रदेश में यादवों की संख्या बहुत होने के कारण उन्होंने प्रारम्भ से ही अपनी जाति के लोगों को पार्टी में प्रमुखता दी। इस बात को उन्होंने छिपाया भी नहीं। मुलायम सिंह यह जानते हैं कि उत्तर प्रदेश में मतदान हमेशा अपनी जाति के उम्मीदवारों को ही किया जाता रहा है। इसलिए यदि वे खुलकर यादववाद का पालन करते हैं तो कोई घाटे का सौदा नहीं है, क्योंकि इसके अलावा उनमें और कोई आकर्षण ही नहीं है। लेकिन वे यह भी जानते हैं कि अकेले अपनी जाति के मतदाताओं के बल पर वे कुछ सीटें तो जीत सकते हैं और सौदेबाजी भी कर सकते हैं, लेकिन पूर्ण बहुमत प्राप्त करके प्रदेश की सत्ता में आना असम्भव सी बात है।

इसलिए उन्होंने यादवों के साथ मुसलमानों को जोड़कर अपना पक्का वोट बैंक बनाने का निर्णय किया था, जो काफी सफल रहा। संयोग से राम जन्म भूमि आन्दोलन ने उनको मुसलमानों का मसीहा कहलाने का स्वर्ण अवसर भी दे दिया और ऐसा बनने के लिए उन्हें निहत्थे कारसेवकों पर गोलियाँ बरसाकर सैकड़ों के प्राण ले लेने में कोई शर्म या संकोच महसूस नहीं हुआ। मुसलमानों और यादवों को एक साथ लेने का यह फाॅर्मूला, जिसे अखबार वाले ‘माई’ फाॅर्मूला कहते हैं, काफी सफल भी रहा और इसके बल पर वे दो बार बहुमत पा गये। एक बार वे स्वयं मुख्यमंत्री बने और दूसरी बार अपने बड़े बेटे को बना दिया।

उनका यह फार्मूला आगे भी चलता रहता और सफल भी होता, यदि भारत की राजनीति में नरेन्द्र मोदी का उदय न हुआ होता। मोदी जी ने अपना वोट बैंक किसी जाति विशेष या वर्ग विशेष को बनाने के बजाय ‘सबका साथ सबका विकास’ का मंत्र दिया, जिससे अनेक दलों के वोटबैंक छिन्न-भिन्न हो गये। मुलायम पुत्र अखिलेश का पाँच साल का कार्यकाल भी कुछ ऐसा नहीं रहा जिस पर गर्व किया जा सके। आधे-अधूरे कार्य उनमें व्याप्त पूरे भ्रष्टाचार के कारण बदनाम रहे। घोर साम्प्रदायिक नीतियों के बल पर उन्होंने अपने मुस्लिम वोटबैंक को साधने का कार्य जरूर किया, लेकिन इसकी प्रतिक्रिया में सभी वर्गों के हिन्दू जातिभेद से ऊपर उठकर मोदी जी के पीछे एकजुट हो गये।

रही सही कसर मुलायम परिवार के बीच आपसी विवादों ने पूरी कर दी। इस यादवी संघर्ष की कहानी लम्बी है, परन्तु अन्ततः सभी कुछ अखिलेश के हाथों में आ गया। अखिलेश जानते थे कि अपने बल पर इस बार समाजवादी पार्टी बहुमत नहीं ले पाएगी, इसलिए उन्होंने अपने पिता की नाराजगी मोल लेकर भी कांग्रेस से समझौता कर लिया, जिसका थोड़ा सा वोटबैंक प्रदेश में कहीं-कहीं बाकी है। लेकिन यह दाँव भी उल्टा पड़ा। दोनों मिलकर 60 सीटें भी नहीं जीत सके, जबकि दावा तीन सौ सीटें जीतने का किया जा रहा था।

इस भारी पराजय से यह तय हो गया है कि मुलायम सिंह और उनके साथ शिवपाल यादव का राजनैतिक जीवन अब समाप्त हो गया है। केवल अखिलेश के साथ रहने वाले लोग ही भविष्य में कुछ कर पायेंगे, बशर्ते वे अच्छे विपक्ष की भूमिका निभायें और पाँच साल तक धैर्य धारण करें। वरना साइकिल जो पंचर हो गयी है उसका पंचर जुड़ने पर भी उसके चलने की कोई संभावना निकट भविष्य में नहीं है। बिहार की तरह महागठबंधन का विचार इनके लिए आशा की एकमात्र किरण अवश्य है, परन्तु हर बार और हर जगह यह सफल ही होगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है।

विजय कुमार सिंघल
चैत्र कृ 4, सं 2073 वि (16 मार्च 2017)

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com