“मेहनत की पतवार”
खाली कभी न बैठिए, करते रहिए काम।
लिखने-पढ़ने से सदा, होगा जग में नाम।।
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खाली रहे दिमाग तो, मन में चढ़े फितूर।
खुराफात इंसान को, कर देती मग़रूर।।
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करे किनारा सुजन जब, मिट जाते सम्बन्ध।
दुनियादारी में धरे, रह जाते अनुबन्ध।।
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नहीं कभी अभिमान से, बनती कोई बात।
ज्ञानी-सन्त-महन्त की, मिट जाती औकात।।
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धन-दौलत-सौन्दर्य पर, मत करना अभिमान।
सेवा करके गुरू की, माँग लीजिए ज्ञान।।
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गुरू चाहता शिष्य से, इतना ही प्रतिदान।
जीवनभर करता रहे, चेला उसका मान।।
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मन में रहे उदारता, आदर के हों भाव।
मेहनत की पतवार से, पार लगेगी नाव।।
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(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)