गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

सदा के लिये कोई आया नहीं
ऐसा गीत मैंने तो गाया नहीं

सभी जानते आपको अब यहाँ
यहाँ शख़्स कोई पराया नहीं

कि प्राणी कई मिल तो जाते यहाँ
सभी को तो अपनाया जाता नहीं

सभी काम की बातें करते यहाँ
सुनो, वक़्त ठुकराया जाता नही

गुज़रता है इन्सान इम्तिहान से
कि भाग्य से ज़्यादा तो पाया नहीं

जहां जीत लें प्यार से सब यहाँ
कहीं ताज सबने बनाया नहीं

सदा ठोकरों से हुये रू-ब-रू
कभी हौसला तो गिराया नहीं

तमन्ना रही मंज़िलें पाने की
कदम पीछे हमने हटाया नहीं

जरा दिल्लगी कोई करता कहीं
उसे भी कभी तो सताया नहीं

मिलीं सोहनी मोहनी मूरतें
किसी से भी दिल तो मिलाया नहीं

कि जज़्बा-ए-रौ में बहते ही रहे
वजू आप अपना गिराया नहीं

‘रश्मि’ खाया धोखा भी तूने कभी
कि धीरज को अपने गँवाया नहीं