“खरबूजे का मौसम आया”
मित्रों…!
गर्मी अपने पूरे यौवन पर है।
ऐसे में मेरी यह बालरचना
आपको जरूर सुकून देगी!
पिकनिक करने का मन आया!
मोटर में सबको बैठाया!!
पहुँच गये जब नदी किनारे!
खरबूजे के खेत निहारे!!
ककड़ी, खीरा और तरबूजे!
कच्चे-पक्के थे खरबूजे!!
प्राची, किट्टू और प्रांजल!
करते थे जंगल में मंगल!!
लो मैं पेटी में भर लाया!
खरबूजे का मौसम आया!!
देख पेड़ की शीतल छाया!
हमने आसन वहाँ बिछाया!!
जम करके खरबूजे खाये!
शाम हुई घर वापिस आये!!
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(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)