गीत/नवगीत

गीत: लिखते लिखते हार गया

दो गीत लिखे थे यौवन में
एक मिलन कथा एक विरह व्यथा
एक गीत अधूरा छूट गया
एक लिखते-लिखते हार गया

वो नीम ठाँव की दोपहरी
वो धूप-छाँव की दोपहरी
जो तपिश विरह की दहकाती
वो प्रेम-गाँव की दोपहरी

तुम प्रिये न फिर मिलने आयी
मैं तकते-तकते हार गया

मैंने इक कोरे पन्ने पर
चेहरे का चित्र उकेरा था
कोरा पन्ना था हृदय मेरा
पन्ने पर चेहरा तेरा था

मैं चला रंग भरने उसमें
पर भरते-भरते हार गया

आसान नहीं था चल पाना
इस जीवनराह तुम्हारे बिन
प्रिय बिना इज़ाज़त यादों को
अपने संग रखता रातोदिन

निर्णय था तुम बिन चलने का
पर चलते-चलते हार गया

हो सकी न पूरी अभिलाषा
अब तक, अब पूरी क्या होगी
मुझसे बढ़कर इस दुनिया में
कोई मज़बूरी क्या होगी

दुनिया के शब्दों के शायक
मैं सहते-सहते हार गया

मैं पंछी मस्त गगन का हूँ
क्या करूँ कटी इन पाँखों का
मैं दिल से सीधे निकला हूँ
दिखता हूँ आँसू आँखों का

कब ?कौन? समय से जीता है
मैं बहते-बहते हार गया

— प्रवीण श्रीवास्तव ‘प्रसून’

प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'

नाम-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून' जन्मतिथि-08/03/1983 पता- ग्राम सनगाँव पोस्ट बहरामपुर फतेहपुर उत्तर प्रदेश पिन 212622 शिक्षा- स्नातक (जीव विज्ञान) सम्प्रति- टेक्निकल इंचार्ज (एस एन एच ब्लड बैंक फतेहपुर उत्तर प्रदेश लेखन विधा- गीत, ग़ज़ल, लघुकथा, दोहे, हाइकु, इत्यादि। प्रकाशन: कई सहयोगी संकलनों एवं पत्र पत्रिकाओ में। सम्बद्धता: कोषाध्यक्ष अन्वेषी साहित्य संस्थान गतिविधि: विभिन्न मंचों से काव्यपाठ मोबाइल नम्बर एवम् व्हाट्सअप नम्बर: 8896865866 ईमेल : praveenkumar.94@rediffmail.com