हास्य व्यंग्य

ये गॉडफादर और उनके लोग !

आज उसे अपने गॉडफादर से मिलना था…असल में, यह उसके गॉडफादर ही थे जिनके कारण वह मनचाही जगह पर तैनाती पा जाता था। इस बार भी उसके साथ ऐसा ही हुआ था। उसे एक बार फिर प्राइम स्थान पर तैनाती मिली थी ! हाँ प्रइम स्थान उसके लिए और कुछ नहीं बस उसकी मनचाही पोस्टिंग हुआ करती है। बस ऐसे ही मनचाहे स्थान पर तैनाती पाकर वह एक प्रकार के वीआईपीपने की सुखानुभूति में डूब जाता था और कभी-कभी लोगों पर अपनी पहुँच का रौब भी झाड़ दिया करता। हालांकि लोग उसे बहुत पहुँच वाला भी मान लिया करते थे..फिर तो उसका खूब रंग जमता था..!! इसी का शुक्रिया अदा करने उसे अपने गॉडफादर से मिलने जाना था।

उसे याद आया, कभी-कभी उसकी टकराहट अपने जैसे लोगों से हो जाया करती है…जिनके भी अपने-अपने गॉडफादर होते हैं..! आज के युग में तो सभी के गॉडफादर होते हैं..! क्योंकि सभी जागरूक हो चुके हैं। लेकिन जिसका गॉडफादर भारी पड़ता है, वही मनचाही जगह पाता है..! अब ऐसे गॉडफादर वालों की भीड़, गॉडफादरों के लिए भी एक समस्या टाइप की बन चुकी है। खैर…

हाँ तो..वह अपने गॉडफादर के ठौर पर पहुँच गया था…उसने देखा, उसके जैसे अन्य लोग भी गॉडफादर से मिलने आए थे..हो सकता है सभी उसके जैसा ही प्राइम स्थान पाने की अपेक्षा लेकर आए हों..!! खैर.. जो भी
हो, उसे गॉडफादर से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ…

थोड़ी बहुत हाल-चाल लेने देने के बाद गॉडफादर ने उससे पूँछा, “क्यों भई, लोगों के बीच हमारे काम का मूल्यांकन कैसा है…”

गॉडफादर की इस बात पर कुछ पल के लिए वह अचकचाया जरूर, लेकिन अगले ही पल उसके मुँह से निकल गया, “लोग अच्छा नहीं कह रहे हैं..लोगों का सोचना है कि कुछ भी तो नहीं बदला..! सब उसी ढर्रे पर चल रहा है..! मेरी सलाह है, आप कुछ नया सोचिए..नए ढंग का करिए, तभी शायद लोगों की अपेक्षाओं पर खरे उतरें..?” पता नहीं यह सब उसके मुँह से क्यों और कैसे निकल गया था..जो नहीं निकलना चाहिए था! असल में ये गॉडफादर टाइप के लोग सही बात सुनने के आदी भी तो नहीं होते..! लेकिन, बात मुँह से निकल चुकी थी, तो इसका असर होना ही था…

गॉडफादर ने अपने पूरे वजूद के साथ उसे घूर कर देखा था…शायद, उसे अपना पालित होने का अहसास कराते हुए वे बोले थे, “वाह! सही बात बताई! अब हमें गॉडफादर बनना छोड़ ही देना होगा…तभी हम बदलाव का संदेश दे पाएँगे…” इतना कहते हुए उसके उन गॉडफादर ने उसे जाने के लिए भी कह दिया था..

अब तो, काटो तो खून नहीं टाइप से, वह पशोपेश में था कि क्या गॉडफादर होना ही समस्या की जड़ है या फिर उसके जैसे लोग..! लेकिन इसपर उसे सोचने की फुर्सत नहीं थी, वह फिर से उन्हें मनाने के लिए जुट गया था..क्योंकि वह बखूबी जानता था…प्रयासेहिंकार्येणि सिद्धन्ति…आखिर उसे अपना मनचाहा स्थान भी तो लेना था..!! और नियम भी तो यही गॉडफादर जैसे लोग बनाते हैं…बल्कि कहिए कि नियम ही इसलिए बनाए जाते हैं कि गॉडफादर का गॉडफादरत्व कायम रहे..! और ये नियम को मनमाफिक ढाल भी लेते हैं…!!!

*विनय कुमार तिवारी

जन्म 1967, ग्राम धौरहरा, मुंगरा बादशाहपुर, जौनपुर vinayktiwari.blogspot.com.