कहानी

एक किलो चिउरा(पोहा) और एक ढेला गुड़

धान रोपनी के बाद भी रमेसरा परेशान है, पूरा सरेह पानी के लिए मुंह बाए खड़ा है, सूर्यदेव अलगे आग उगिल रहे है, सुमित्रा चाची इंद्रदेव को गरियाती हुई बोली है

“आग लागो इनरदेव के, पूरा धान हमर जर गेल, बारिश कपार के दिन होएत”

शायद मिनिस्ट्री ऑफ रेन अफेयर्स के प्रमुख इंद्रदेव जी को सुमित्रा चाची की बात भकभका के लग गया, अगले कुछ घंटों में Southern नेपाल सहित पूरे उत्तर बिहार में निम्न वायुदाब का क्षेत्र बना, बंगाल की खाड़ी से तूफान उठा बादलों को धकियाता, ठेलता हुआ हिमालय से टकड़ा दिया गया, चारो ओर काले-काले बादल मंडराने लगे, सभी दिशाएं मौन-स्तब्ध, शाम में बूंदा बांदी शुरू हुई, हवाओं ने भी भैरव नृत्य करना शुरू कर दिया, बांसवन में बांस झूलता, मचमचाता, गोंगियाता हुआ, पूरे सरेह (वन) में वनदेवी अट्टहास करती हुई गुजर रही, नीलगायों का झुंड भागता हुआ, बारिश धीरे-धीरे तेज होने लगी, अगले तीन दिनों तक जम के बारिश हुई, लोग घरों में बंधक बन गए, नदी, खेत, खलिहान सबके तन-मन को इस दक्षिण-पश्चिम मानसून ने भिगोया, सूख रही फसलों को नवजीवन मिला. लेकिन नेपाल से निकलने वाली नदियां गुर्राहट करती हुई, गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती, करचा, कोसी अपने पूरे रंग में लौट आई है। भुजाएं फैलाए नदियां अट्टहास करती नाचती हुई प्रलय के लिए आगे बढ़ रही है।

लेकिन गांव में सामान्य माहौल ही है, भविष्य से अनजान, उधर फल्गूआ भैंस चराने गया है, कल्लूआ बकरियों को हांकते हुए और भोजपूरी गायक पवन सिंह का गाना
रात दिया बुता के पिया …….. फूल वाल्यूम में भउजाई वाले मोबाईल पर सुन रहा है, चेथरु महतो भी मेहरारू से लड़ झगड़ के 70 रूपया लेकर निरहुआ का फिलिम शंकर सिनेमा हॉल में देखने सीतामढ़ी गया है, जीतन जादो का तो छप्पर उड़ गया था, छप्पर सरिया रहे है, रामनाथ सिंह की गईया तीन दिन तक भीगती रही, रामनाथ सिंह तो बाबा धाम गए थे, आए तो पड़ोस गांव से पशु चिकित्सक को बुला करके मोटका सूई भोंकवा रहे है।

बूढ़ी बागमती नदी के किनारे खेत तमनी कर रहे जगेसर सहनी को प्यास लगी है, नदी की ओर गया है, नदी में पानी पी रहे भैसिया, गईया भी आने वाली बाढ़ तबाही को सूंघ कर आतंकित हो रही है, नीलगायों का झुंड भी आर्तनाद करता हुआ भाग रहा है, जीवन के 60 बसंत देखचुका जगेसर सहनी अपने अनुभवी हाथों से ही पहाड़ी कनकन ठंडा गेरूआ पानी छूते ही, चिचियाते हुए भागा है, बाढ़………बाढ़….. बाढ़……… नदी किनारा छोड़, भाग रे मदना छौरा, भाग… नदी की ओर से भागते हुए गांव की ओर आया है, गांव तो वासुदेव श्री कृष्ण के आगमन की गीत गा रहा है, गांव की अमराईयों और आंगनों में यशोमती मईया से बोले नंदलाला जैसे मोहक गीत गाए जा रहे है, मूर्तिकार मूर्ति को अंतिम बार सजा रहा है, छोटे बच्चों की टोलियां मेला जाकर मेला में पिपही, घिरनी, फुलौना खरीदने को उत्सुक है, लेकिन भगवान श्री कृष्ण के आगमन खुशी, रोहिणी नक्षत्र में बारिश भी आगमनी की गीत गाना चाह रही है, कर्रकर्राहट बिजली के बीच क्रुद्ध गुर्राहट के साथ बागमती गोंगिंयाती हुई लोगों के निकट आ रही है, उत्तरवारी और पछियारी टोले के भयातुर लोगों ने कंठों से चींखना शुरू किया है

– बा….बा…बाढ़ , दाहड़ अलउ रे दाहड़ अलउ ह रे, बाप रे बाप……… लोगों ने भागना शुरू किया,

कुछ लौंडे विडियो बना रहे है, उंगलियों से V का निशान बना सेल्फी लेकर फिलिंग इक्साइटेड विथ 17 others लिख फ़ेसबुकपर status डाल रहा, इक्साइटेड, अबे बाढ़  आया है तुम्हरे  जीजाजी नहीं.

पूरा गांव सभी सुरक्षित स्थानों की ओर जाना चाह रहा है, खेत में काम कर रहे लोग भाग-भागकर घर आ रहे है, हलवाहा बैल, हेंगा, रस्सी लेकर भाग रहा है. सूर्यदेव भी 3 बजे दिन में ही डूब रहे है, चारो ओर अंधकार. पानी बढना शुरू हुआ, हर घर में कमर भर पानी, जटेसर बाबा, बिरेंद्र बाबू तो अपने हिसाब से आकलन कर रहे है, ई सरवा बंगमतिया का बंधवा टूट गया का हो जटेसर बाबा, नएका रोड भी बह गया है, हां बिरेंद्र सुरक्षित स्थान पर निकलो प्रलय है प्रलय।

लोग एक दूसरे की मदद भी कर रहे है, बांस-बल्ली, केला थम बांधकर लोगों सुरक्षित स्थान पर लाने का प्रयास कर रहे है. निचले इलाकों में जिनका घर है वो भी कमर भर पानी में रहने को मजबूर है, चूल्ही-चउका सब डूब चुका है, अनाज पहले ही बह चुका है, पानी बढ़ता जा रहा है।

दुहाई हो बागमती मईया….. दुहाई हो इनरदेव,..दुहाई हो बरहम बाबा..दुहाई हो देवता पीतर.…….. रमेसरा करुण वंदना किया है, पूरे परिवार ने बागमती मईया का वंदन करना शुरु किया है,
तोहे…..चरनमा…में…औरहुल…फूलवा….चढ़ाएम….हे….बगमती…..मईया….

लेकिन बागमती मईया पूरे रौ में दिखती हुई…. अट्टहास करती, क्रुद्ध हुई हाहाकार मचाती गुजर रही है…. वंदन…का कोई असर नहीं बस प्रलय है प्रलय. लोग फिर भी हिम्मत नहीं हार रहे है, बांस बल्ली से ही सही, नाव बनाकर सुरक्षित स्थान पर जाना चाह रहे है. बकरी भी दह गया, मंगरूआ का बाछी..दह रहा है, पकर रे परमेशरा…बछड़ा लेके छप्पर पर चहड़ जो….मंगरुआ की माई भी दहा रही है…परमेशरा झट से बछड़ा छोड़ के मईया को पकड़ा है, धामिन, ढो़ड़वा, गेहुंहन सांप अलग से बउआ रहा है, गेहुंअन हउ गे मईया, टोकटाक न कर जाएदे, अपने भाग जतई, मंगरूआ के माई, सांप देखते चिचियाई है दी दी गे दीदी..माई गे माई… लेकिन पानी का बहाव इतना तेज है कि सांप भी बहकर दूसरी ओर चला गया है, सांप के गुजरने के बाद एक-एककर पूरा परिवार भागकर उंचे स्थान सरकारी स्कूल में पहुंचा है, बांस के खूटा गार के तिरपाल टांग के तंबू लगा है, पचासियो परिवार भागकर तंबू बनाकर रह रहा, दर्जनों मवेशी तो बह गया, बारिश रुकने का नाम न ले रही. दुहाई हो इनरदेव,..दुहाई हो बरहम बाबा..दुहाई हो देवता पीतर.

बाढ़ के बीच पिछला चुनाव हारे, क्षेत्र के नेताजी को सेवा का अवसर मिला है, हाथ से मौका निकलने देना नहीं चाहते, 2 दर्जन चेला, चटिया सहित बाढ़ पीड़ितों को मुआयना करने का मन बना रहे है, तभी मेन चटिया रामखेलावन ने नेताजी को सजेशन दिया है, तेजनारायण बाबू चलने से पहिले, नाव पर अपना चुनाव चिन्ह मकई छाप लेई से चिपका लेंगे तो निमन रहेगा, आ जिसको सेवा करेंगे कमसेकम उसके अपन छाप तो याद रहेगा न तब न अगला बेर वोट देगा, न त फेर हार जाईएगा महराज, तेजनारायण बाबू नेताजी के दिमाग की लाल बत्ती जल उठी, झट से अपने पार्टी के चुनाव चिन्ह मकई छाप को नाव पर चिपकाकर बाढ़ पीड़ितों से मिलने निकल चुके है, एक बोरिया चिउरा और मीठा भी रख लिए है, निकॉन के कैमरे वाले कैमरामैन को भी बोलवाए है, पहुंच कर मेन चटिया रामखेलावन ने घोषणा किया है, चिंता की कोय बात नय है, नेताजी आ गए है, रमेसरा को भी पता चला की नेताजी हाल पूछने आए है, पड़ोस छप्पर पर बैठे जगेसर सहनी भी बोला की हां चलो चलो नेता जी आए है, गर्दन भर पानी हेलकर नेताजी के पास पहुंचा है, नेताजी 2-2 किलो चूरा और मीठा बांट रहे हैं और बजाबते से कैमरामैन से फोटो भी खिंचवा रहे है, रामखेलावन ने रमेसर को कहा है ईहे है नेता जी जनता के दुख दरद को अपना समझते है, पिछला बेर तुम्हरे टोला से वोट न आया था, लेकिन फिर भी तुम्हारा ख्याल रख रहे है, फोटो सेशन के बाद, नेताजी ने धीरे से कहा है, रे रमखेलवना जल्दी से फेसबुक पर डाल दे कैपशन लिख के की

बाढ़ पीड़ितों को राहत सामग्री वितरित करते हुए जनप्रिय तेजनारायण बाबू नेता जी.

झटाझट फेसबुक पर लाईक्स कमेंट आ रहा है। तभी रामखेलावन ने जयकारा लगाया है, हमारा नेता कैसा हो. तेजनारायण बाबू जैसा हो…

अचानक पता चला जीते हुए नेताजी को कि विपक्षी तेजनारायण बाबू आपसे पहिले जाके सेवा में लग गए है, और आप निश्चिंत है, आप तो पछुआ गए यहीं मौका है घोटाला छिपाने का चलिए-चलिए, नेताजी को भक खुला, प्रशासन को फोन किए जल्दी से SDRF की दो टीम भेजो, जनता को बचाना है, दो नाव पहुंचा, पूरा गांती उती बांध के नेता जी SDRF की टीम सदस्यों मे से दो को उतारकर अपने चेलबा चटिया को बईठा रवाना हो चुके है, लाव लश्कर के साथ सबको सांत्वना दे रहे है, टेंसन मत लीजिए मुख्यमंत्री जी आज से हवाई सर्वक्षण भी कर रहे है, सबको मुआवजा मिलेगा, दो-दो किलो चिउरा मीठा देकर, फोटो खींचवाए, चमचो ने चिल्लाना शुरु किया हमारा नेता कैसा हो राम पदारथ बाबू जैसा हो, फेसबुकिया चमचो को एक्टिव किया गया, जितना हो सके circulate करो, Facebook what’s up पर, विपक्षियो से कम लाईक्स नहीं आनी चाहिये, नेताजी फेसबुक पर लाईक कमेंट बटोर रहे है, कामरेडो को पता चला दिल्ली हाईकमान से भी फोन आया भागो जाओ जनता से मिलो. तुम लोग हमेशा पीछे रहते हो।

सभी पोहा और गुड़ दे-देकर और फोटो खींचवा शाम तक चले गए, इन चिरकूट नेताओं के बीच जिला प्रशासन और कुछ अन्य भी थे जो किसी राजनैतिक पार्टी से नहीं है बिना संकोच किए लोगों मदद करते रहे.

टिटही चिरईया अलग से अमंगल की गीत गा रही है…पूरा दिन तक रूक-रूककर बारिश. लोग बीमार भी हो रहे थे, भगवान से मदद भी मांगते रहे, महिलाएँ तोहे…..चरनमा…में…औरहुल…फूलवा….चढ़ाएम….हे….बगमती…..मईया….गीत गा वंदन करती रही,

रात को बारिश थमा है, सुबह तक पानी भी निकलना शुरु हुआ धीरे-धीरे लोगों की जाने मे जान आई, 5-6 दिन बाद सभी अपना – अपना घर जाना चाह रहे है, पानी तेज़ी से घट रहा है, लग रहा की कलतक सारा पानी निकल जाएगा, अगली सुबह सभी अपने -अपने घर लौटे, छपाछप कीचड़ के बीच मरे मवेशियों की दुर्गंध,

रमेसरा भी पूरा परिवार के साथ लौटा घर, मरई तो बहाकर बागमती मईया ले गई, कठमन गेहूँ उपजा था, माटी वाला कोठी मे रखा था, न मरई बचा न कोठी, मंगरुआ के माई तो कोठी मे ही 13000₹ बेटी के दहेज के लिए रखी थी, दहेज तो बागमती नदी ले गई, बगल खेत जिसमें धान रोपा था चुटकी भर फसल न दिख रहा, आसमान मे सूर्यदेव आ चुके है, शायद अचेत धरती को फिर से जगाना चाह रहे, सैकड़ों सपनों को अपने साथ बहा ले जा चुकी, सबकुछ जा चुका, घर, फसल, मवेशी और बागमती का पानी भी, बचा है तो सिर्फ बाएं हाथ में रखी पोटली में 1 किलो चिउरा और एक ढेला गुड़ का.

– आनंद कुमार

सीतामढ़ी

आनंद कुमार

विद्यार्थी हूं. लिखकर सीखना और सीखकर लिखना चाहता हूं. सीतामढ़ी, बिहार. ईमेल-anandrajanandu7@gmail.com