कविता

कविता : व्यथा पहाड़ की

विकास की छाती पर
रख सिर रोता है पहाड़
न देखे उसकी दरकन
न ही सुने दहाड़ ।।
नंगी हो गयी उसकी काया
प्रस्फुटन दब कर सोई
पर्वतो से निकल निकल
नदिया भी बहुत रोईं
उसकी गति के रास्ते
रोकते किवाड़ ।।
न दुर्लभ पथ न बिहड़पन
सुषमा न न्यारी प्यारी
रहा लुभावन अब वो मंजर
रही न मखमली हरियाली
मानवो के लालच ने
सब कुछ दिया बिगाड़ ।।
खाली किये पलायन ने
पर्वत के संगीत
मारे मारे ढूंढते
इत उत बादल मीत
पहले जैसा न रहा
स्रष्टा का वो लाड़ ।।
सुशीला जोशी 

सुशीला जोशी

जन्म तिथि -- 5-9-1941 ●शिक्षा -- MA - हिंदी ,अंग्रेजी , BEd , संगीत प्रभाकर - गायन ,कथक ,सितार ,तबला ( प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद ) ●लेखन अवधि - 1954 से आज तक लेखन विधा -- गीत ,नवगीत , कविता ,गीतिका ,दोहा ,चौपाई , रोला ,कुण्डली , घनाक्षरी , मुक्तछंद , हाइकू लेख ,निबन्ध, कहानी , ललित निबन्ध , संस्मरण , रिपोर्ताज ,साक्षात्कार । ●सम्मान -- कई पुरस्कारों के साथ हिंदी साहित्य संस्थान उत्तर प्रदेश लखनऊ से 2009 में "अज्ञेय " पुरस्कार । अर्णव कलश एसोसिएशन द्वारा ऑन लाइन प्रतियोगिताओ के लिए 10 सम्मानों के प्रशस्ति पत्र ।