कविता

कविता : किसी रुद्र से परे नही हूं 

किसी रुद्र से परे नही हूं
जब अपनी पर आती हूं
स्वाभिमान की खातिर तो
अग्नि तक से लड़ जाती हूं ।।
मैं रक्षक हूं मैं भक्षक हूं
आद्य शक्ति का हूं प्रतीक
युद्ध भूमि में कूद पडूँ तो
रणचंडी बनती सटीक ।।
पीड़ा को ललकारती हूं
पर खुद जौहर बन जाती हूं
अपनी आन मर्यादा के हित
यम तक से भिड़ जाती हूं ।।
बहुत हो चुकी हँसी ठिठौली
जागी हूं अब सबला बन कर
अपने आत्मबल के सम्मुख
सदा रहूंगी विमला बन कर ।।
मैने सभी बनाये पुतले
इस धरती की माटी बन कर
आगे जगत बढ़ाया मैंने
संस्कृति की परिपाटी बन कर ।।
अब न ही कोई जुल्म सहूंगी
न ही कुछ अनदेखा होगा
अब मेरे हर अत्याचार का
पूरा लेखा जोखा होगा ।।
सुशीला जोशी 

सुशीला जोशी

जन्म तिथि -- 5-9-1941 ●शिक्षा -- MA - हिंदी ,अंग्रेजी , BEd , संगीत प्रभाकर - गायन ,कथक ,सितार ,तबला ( प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद ) ●लेखन अवधि - 1954 से आज तक लेखन विधा -- गीत ,नवगीत , कविता ,गीतिका ,दोहा ,चौपाई , रोला ,कुण्डली , घनाक्षरी , मुक्तछंद , हाइकू लेख ,निबन्ध, कहानी , ललित निबन्ध , संस्मरण , रिपोर्ताज ,साक्षात्कार । ●सम्मान -- कई पुरस्कारों के साथ हिंदी साहित्य संस्थान उत्तर प्रदेश लखनऊ से 2009 में "अज्ञेय " पुरस्कार । अर्णव कलश एसोसिएशन द्वारा ऑन लाइन प्रतियोगिताओ के लिए 10 सम्मानों के प्रशस्ति पत्र ।