कविता

वंशस्थ छंद

*विधा :~ ◆वंशस्थ छंद◆* विधान~ [ जगण तगण जगण रगण] (121 221 121 212) 12वर्ण, 4 चरण, दो-दो चरण समतुकांत]

“वंशस्थ छंद”

कुटेव का मोह जभी बिदा करें
बिमार का जोड़ अभी जुदा करें
बहार छाए हर मोड़ आप के
चढ़े बुखारा तिन तोड़ तो करें।।

सहाय कैसे भल आप को मिले
उपाय कोई कब आप को मिले
नशा पुराना मित्र मान लीजिए
सुगंध कैसे इत्र आप को मिले।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ