ग़ज़ल
तूफ़ान में जलता हुआ दीपक भी’ बुझा है
संकेत है’ रक्षा में’ भी’ उस्ताद खुदा है |
शोले में’ कशिश-ए-लम्स, मुहब्बत असीमित
ये इश्क की’ ज्वाला में’ पतंगा ही जला है |
ये शाम नहीं कटती’ तन्हा शब-ए-जवानी
आतिश–ए-मुहब्बत में फ़ना मेरी’ वफ़ा है |
वादा किया’ तुमने तो’ सचाई से’ निभाना
वादे से’ मुकरना तो’ मुहब्बत में’ सज़ा है |
बौछार पड़ा मेंह का’, रूप और भी’ निखरा
महबूबा’ के’ हाथो में’ सजे जो वो’ हिना है |
श्रद्धालु कई मारे’ गए खिन्न क्यों’ “काली’
रक्षक को’ई’ तो और नहीं जंद खुदा है |
कालीपद ‘प्रसाद’