गीतिका/ग़ज़ल

मेरे चौथी ग़ज़ल

फर्श से अर्श तक पहुँची हूँ, वापस फर्श तक पहुँचना बाक़ी है।
हक़ीकत देखना है अभी कि अभी तो झूमा रहा मुझे मेरा साकी है॥

जाने से किसी के ख़त्म होता है कहाँ जीने का सिलसिला भी।
कि कुछ न बचा हो तो भी, अभी मैं बाकी हूँ, मेरा वजूद बाकी है॥

क्यों सर-ए-सहर आँखों मे मेरे हसीन ख्वाब उतर आते हैं।
कि शाम बाकी है, दिन ढला नहीं कि अभी तो रात बाकी है।।

यों खड़े हैं ऊँचाई पर कि ज़माना नीचे नज़र आता है।
ज़माने से ही तो हम हैं, भला नज़रों कि ये क्या चालाकी है॥

क्यों एक ही ज़मीन की तरह मिलते नहीं हम गले लगकर।
क्यूँ ये रंजिशें हैं, क्यों सर-ए-सरहद पर फैला रंग खाकी है॥

उफ ये क्या कह दिया मैंने, क्यूँ कि अमन की कोई बात।
कैसी नादान हूँ मैं, मेरे बातों में ये कैसी अजब सी बेबाकी है॥

चंद लम्हे गुज़ारे हमने यहाँ, और कुछ साँसें भर बची हैं।
बहुत नहीं अभी कि पर्दा उठने में अब कुछ ही देर बाकी है॥

कौन आया था साथ मेरे कि साथ मेरे अब जाएगा वापस।
तो खुदी से पूछा रेणुका कि सफर ऐ हमसफर कितना बाकी है॥

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*नीतू सिंह

नाम नीतू सिंह ‘रेणुका’ जन्मतिथि 30 जून 1984 साहित्यिक उपलब्धि विश्व हिन्दी सचिवालय, मारिशस द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिन्दी कविता प्रतियोगिता 2011 में प्रथम पुरस्कार। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कहानी, कविता इत्यादि का प्रकाशन। प्रकाशित रचनाएं ‘मेरा गगन’ नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2013) ‘समुद्र की रेत’ नामक कहानी संग्रह(प्रकाशन वर्ष - 2016), 'मन का मनका फेर' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2017) तथा 'क्योंकि मैं औरत हूँ?' नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) तथा 'सात दिन की माँ तथा अन्य कहानियाँ' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) प्रकाशित। रूचि लिखना और पढ़ना ई-मेल [email protected]