कविता

“मंगलमंगना छंद”

विधान~ [ नगण भगण जगण जगण जगण गुरु] (111 211 121 121 121 2) 16वर्ण,4 चरण, {4,12वर्णों पर यति} दो-दो चरण समतुकांत

अब चले उठ कहाँ सहमे पथ आप के

मथ रहे मन कहीं रुकते पग आप के

चल पड़े जिस गली लगती वह साँकरी

पढ़ रहे तुम जिसे लगते खत बाहरी।।

मत कहो फिर चलें अपने रुख ऑधियाँ

तक रहीं दिल लिए जखमें जल बाँदियाँ

उठ रहे बुलबुले कहना कुछ चाहते

हम जिसे जलजला उठना कब मानते।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ