गीत/नवगीत

“नन्हें दीप जलायें हम”

दीवाली पर आओ मिलकर,
नन्हें दीप जलायें हम
घर-आँगन को रंगोली से,
मिलकर खूब सजायें हम

आओ स्वच्छता के नारे को
दुनिया में साकार करें
चीन देश की चीजों को
हम कभी नहीं स्वीकार करें
छोड़ साज-संगीत विदेशी
देशी साज बजायें हम
घर-आँगन को रंगोली से,
मिलकर खूब सजायें हम

कंकरीट की खेती से
धरती को हमें बचाना है
खेतों में श्रम करके हमको
गेहूँ-धान उगाना है
अपने खेतों की मेढ़ों पर
आओ वृक्ष लगायें हम
घर-आँगन को रंगोली से,
मिलकर खूब सजायें हम

मजहब के ठेकेदारों की
बन्द दुकानें करनी हैं
भाईचारे की भारत में
नयी नींव अब धरनी हैं
लालन-पालन करने वाली
माँ की महिमा गायें हम
घर-आँगन को रंगोली से,
मिलकर खूब सजायें हम

असली घर में नकली पौधों
का, अब कोई काम न हो
कुटिया में महलों में अपने
कहीं छलकते जाम न हो
बन्द करो मयखाने सारे
शासन को चेतायें हम
घर-आँगन को रंगोली से,
मिलकर खूब सजायें हम

देव संस्कति को अपनाओ
रक्ष सभ्यता को छोड़ो
राम और रहमान एक हैं
उनसे ही नाता जोड़ो
भेद-भाव, अलगाववाद का
वातावरण मिटायें हम
घर-आँगन को रंगोली से,
मिलकर खूब सजायें हम

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है