गीतिका/ग़ज़ल

“गीतिका”

यादें सहज अतीत मिली है

वीणा को संगीत मिली है

मन महफिल पहचान मिली

धूप खिली है शीत मिली है॥

वाह अनोखा है यह संगम

बहुत पुरानी प्रीत मिली है॥

कुछ न कहना कुछ नहीं सुनना

चाहत आज सभीत मिली है॥

ललक परखती आँख पुरानी

बिछड़े मौसम मीत मिली है॥

आओगे तुम एकबार क्या

सुनने मुझे प्रतीत मिली है॥

असमंजस में आया “गौतम”

नयन भिगाती रीत मिली है॥

महातम मिश्रा, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ