सामाजिक

व्यंग्य – नववर्ष के असल मायने 

खिड़कियों के पर्दे बदले जाएंगे। बिस्तरों संग तकियो के कुशन कवर नए आएंगे। कैलेंडर भी नए टांगे जाएंगे। फेसबुक पर कॉपी पेस्ट करके नए-नए स्टेटस चिपकाए जाएंगे। व्हाट्सप्प पर मैसेजों की बाढ़ आएंगी। सावधान ! खबरदार ! बरखुरदार ! 1 जनवरी की तारीख नववर्ष कहलाएगी। पांच सितारा होटलों में जाम पर जाम छलकेंगे। सुबह-सुबह अखबार भी विज्ञापनों से सजे-धजे मिलेंगे। आतिशबाजी के शोर से मचेगा बवाल। वहीं, कई आस-पास मिलेगा ये सवाल। जो पूछेगा कि साल के साथ कब बदलेगा हाल ? महंगाई के कारण मुनासिब नहीं रहा अब खाना भी दाल। प्याज भी अब तो रूला रहा। पहले काटते वक्त तो अब नाम सुनते ही आदमी आंसू बहा रहा। पीछे से आएगी आवाज। बोल पड़ेंगे कुर्सी सेे चिपके हुए नेताजी जिनके सिर पर होगा सियासत का ताज। हम बदल रहे साल दर हाल। देखो ! लोगों का जीवन कितना हो रहा खुशहाल।
यह सुनते ही होगी आकाशवाणी। जो कहेगी – नेताजी आप भी करते है गजब की मनमानी। लोगों का जीवन कैसे होगा खुशहाल ? जब आप तो निगल रहे है सारा का सारा माल। नेताजी – अजी ! आप भी कहाँ निकाल रहे बाल की खाल ? तभी सामने से आता है एक शराब पिया हुआ युवक जिसकी बहकी हुई है चाल। नजदीक आते ही करने लगता है नेताजी से बेतुके सवाल। नेताजी आपने सही फरमाया साल के साथ बदल तो रहे हाल ! आपने किया था गरीबी मिटाने का चुनावी वायदा। चुनाव जीतने में जिसका हुआ आपको बहुत ज्यादा फायदा। और आपने कहे मुताबिक किया है। जितना मांगा था उससे कई अधिक दिया है। उदाहरणार्थ – आपने गरीबी मिटाने के वायदा से आगे बढ़कर गरीब को मिटाने का पूर्ण प्रयास किया है। आमजन की समस्या का विष आपने नीलकंठ बनकर पिया है। ओर सड़क तो आपने ऐसी बनायी है कि गड्ढे भी मुस्कुरा रहे है। बरसात में बहने वाले पानी के साथ मिलकर हनीमून मना रहे है। और अपना खानदान बढा रहे है।
नये साल में तो आप ओर भी करेंगे कमाल। ग्रांड मस्ती संग होगा डबल धमाल। भ्रष्टाचार के फिर टूटेंगे कीर्तिमान। 2जी की तरह मुकदमा चलेगा कोर्ट में सालों साल और किया जाएगा घोटाले का अपमान। घोटालो में होंगे घोटाले। कई सरकारी तिजोरियों के टूटेंगे ताले। यह सब नौंटकी देखकर हंसने लगेगा विकास। बोल पड़ेगा टपाक से – ओ ! मेरे भारतवर्ष की भोली जनता मत रखना मुझसे कोई आस। यदि फिर रखोगे आस तो होंगे केवल निराश। क्योंकि आजकल मैं हूं भारतभूमि से निष्कासित। धरा पर पैर नहीं मेरे मैं तो केवल कागजों में अंकित। इसलिए आजकल कागजों का मौसम गुलाबी है। आने वाला वर्ष चुनावी है।
नववर्ष केवल पैसों वालों की पेशकश है। यह एकलौता सच है। हम तो आज भी है गुलाम। मंडी लगती यहां लाशों की इज्जत होती सरेआम नीलाम। आजादी के नाम पर बन रहे है कोढ़ में खाज। गौरे तो जाते रहे कालों का है राज। फिर भले राज अंधों का भईया। द होल वर्ल्ड थिंकिंग इज डैट सबसे बड़ा रूपैया। जब आम आदमी के घर के नल में आएगा पानी। रात को उपलब्ध रहेगी बिजली रानी। अस्पतालों में बेमौत नहीं मरेंगे बच्चे। नेता झूठ-मूठ के नहीं हकीकत में बनेंगे सच्चे। जिस दिन होगा सर्वजन संप्रदाय का उत्कर्ष। असल मायने में उस दिन होगा नववर्ष।

देवेन्द्रराज सुथार

देवेन्द्रराज सुथार , अध्ययन -कला संकाय में द्वितीय वर्ष, रचनाएं - विभिन्न हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। पता - गांधी चौक, आतमणावास, बागरा, जिला-जालोर, राजस्थान। पिन कोड - 343025 मोबाईल नंबर - 8101777196 ईमेल - devendrakavi1@gmail.com