कविता

बेटी

मै बेटी हूँ
मेरा भी वजूद है
मत बॉधो मुझे
नियम कानून के बेड़ियो से
उन्मुक्त गगन मे
पंख पसार उड़ जाने दो
मै कोई दीनहीन नही जो
तुमसे गुहार लगाऊ
मेरा अधिकार दे दो
बस यही पुकार लगाऊ
लड़ सकती हूँ अपने बल पर
अपनी सभी लड़ाईयॉ
तुम देखते रह जाओगे
सोचोगे क्या कर दी ये बेटियॉ
लड़कियॉ कमजोर है
कभी ये सोचकर भूल न करना
औकात है तो कभी
सामना कर के देख लेना
ऐसे हूँ तो मै
कोमल फूलो की पंखुड़ियॉ
पर कभी ऐसे छुकर तो देखो
किसी कॉटे से कम नही।
निवेदिता चतुर्वेदी’निव्या’

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४