कविता

तुम ठीक कहते हो

तुम ठीक कहते हो
मैं वैश्या हूँ
मेरा कोई ठिकाना नही
जब मन चाहा
जिसके साथ उसके साथ
गुजार दी अपना वक्त
हॉ ये भी सच है
पर पुरूषो के साथ
रहती हूँ ,सोती हूँ
प्यार के ढोंग में
निरवस्त्र हो
समर्पित कर देती हूँ
अपने आप को
और तुम पुरूष
काम के वश होकर
नोचते हो एक भेड़ियो की भॉती
न जाने क्या क्या
कहॉ कहॉ
अपने हाथो से स्पर्श करते हो
और मै मूक रहती हूँ
इसे तुम मेरी लचारी कहो या
मेरे चरित्र से जोड़ो
वैसे भी तुम छोड़ते ही क्या हो
जब काम मुक्त होते हो तो
गालीयो से भर देते हो
वेशर्म ,बेहाया,वेश्या
और भी न जाने क्या क्या बकते हो
लेकिन तुम भी तो कम नही
मेरे साथ तुम भी तो वो पल बिताये हो
फिर मुझे ही शर्म क्यो
शर्म तो तुम्हे भी आनी चाहियें
जब पर स्त्री के साथ रात बिताते हो
जब दूसरो के चरित्र पर ऊँगली उठाते हो
जब दूधमूही बच्ची को
अपने हवश का शिकार बनाते हो
जब अपने ही बेटी को
किसी दूसरे के हाथ बेच देते हो
जब रोड पर चलते हुये लड़कियो के
इज्जत के साथ खािलवाड़ करते हो
बोलो कहॉ चली जाती है
तुम्हारी शर्म
मुझे तो हेय दृष्टी से देखते हो तुम
क्योकि मे़ैं वैश्या हूँ
पर तुम भी मुझसे कम नही ।

निवेदिता चतुर्वेदी ‘निव्या’

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४