कविता

ख्वाहिश

मेरी कुछ ख्वाहिशें
इन ओश के बूँदो की. भॉती
बिखरे पड़े है
एक -एक कर दम तोड़ते जा रहे है
जैसे ओस की बूँदो पर
जब सूर्य की किरणे पड़ती है तो
वो बिखर कर खत्म हो जाती हैं
ठिक उसी तरह मेरी ख्वाहिशें है
जब आस के पूल टूटते हैं और
दूर-दूर तक निराशा ही निराशा दिखता है
तब मेरी ख्वाहिशें बिखर कर
दम तोड़ देती हैं।

निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४