कविता

प्रेम.….

हाय! दिल की ये कैसी आदत है..!!
ठोकर दर ठोकर खाता है..
फिर भी, दिल से दिल लगाता है…

उफ! दर्द से कुम्हलाया है
मन का कोना-कोना
फिर भी, धड़कता है
मुस्कुराता है दिल

ओह! प्रेम में बांध गया वो
दिल के घेरों में मुझे
जोड़ लिया दिल से दिल का तार

देकर अहसास मीठा-मीठा सा
समाता गया धमनियों में
हो रहा प्रवाहित
होकर समाहित रक्त में

होने लगी अंगड़ाईयाँ जवां
जज्बातों में घुलकर

मन पर वासंती का वास हुआ
फागुन में प्रेम परवान चढ़ा
सच! निर्मल, स्वच्छ, धवल प्रेम
प्रेम में जीवन! जीवन में प्रेम॥

*बबली सिन्हा

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