कहानी

खाली हाथ !

सविता ऐसे तो चुप ही रहती थी, पर जब बात उसके स्वाभिमान पर आती तो वो अपना आपा खो देती थी और फिर जो भी सामने आए उसको बात सुना देती। सविता के दो बेटे थे ज़िन्दगी अच्छी जा रही थी। पति भी अच्छे थे,बेटे भी बात मानते थे।
बड़े बेटे के लिए बहुत अच्छा रिशता आया था,पति और दोनो बेटों से बात करने के बाद सबकी सहमति से बड़े बेटे अनिल का रिशता तय हो गया था। बड़ी धूमधाम से शादी कर दी गई थी, बहु भी  सुंदर थी । कुछ साल तो सब ठीक रहा फिर बहु के थोड़े सख्त स्वभाव के कारण सविता के स्वाभिमान को बार बार ठेस पहुंचतीं थी। सविता ने कुछ देर बात संभालने की कौशिश की फिर एक दिन गुस्से से अपनी बहु और अनिल को अलग घर में रहने को कहा। पति ने समझाया ऐसा मत करो दोनो आपस में बात कर के देखो पर सविता नहीं मानी कहने लगी अब मैं चाहकर भी इनके साथ नहीं रह सकती। अनिल ने अपनी पत्नी को भी  डांटा और माँ से माफी मांगने को कहा पर बात नहीं बनी। अब अनिल अपनी पत्नी के साथ नए घर में चला गया था, अनिल भी अच्छा कमाता था किसी चीज की कमी नहीं थी पर वोअपने ममी पापा और भाई के साथ रहना चाहता था। छोटे भाई की पढ़ाई पूरी हो गई थी। वो घर वापिस आ रहा था। अनिल भैया और भाभी के अलग घर में रहने की बात पता चलने पर उसे बहुत दुख हुआ पर वो बेबस था। माँ मानने क तैयार नहीं थी, भाभी भी अपने स्वभाव की थी। उन्होने भी कोई खास कौशिश नहीं की मां को समझने की और खुश रखने की। सुनिल कुछ दिन ममी पापा के साथ रहा फिर नौकरी के लिए काॅल आई और वो फिर शहर से बाहर चला गया। जल्दी ही नौकरी भी लग गई थी, वहीं पर एक लड़की पसंद की और घर पर शादी की बात करने को कहा ममी,पापा, अनिल और भाभी को भी लड़की पसंद थी। सुनिल की शादी भी हो गई कुछ दिन ममी पापा के साथ रहने के बाद सुनिल अपनी पत्नी के साथ वापिस चला गया । सुनिल और उसकी पत्नी ने शहर के बाहर ही रहना था , वहाँ दोनो नौकरी जो करते थे। सविता अपने पति के साथ वही रहती थी अनिल और बहु कभी कभी मिलने आ जाते थे। एक दिन सविता के पति को अचानक दिल का दौरा पड़ा और मां ने अनिल को फोन किया अस्पताल ले जाते रास्तते में ही दम तोड़ दिया था। माँ बहुत सदमे में आ गई थी, अपने पति के सहारे ही तो वो दिन निकाल रही थी। सुनिल भी अपनी पत्नी के साथ आ गया और संस्कार के कुछ दिन बाद वापिस जाने की तैयारी करने लगा। सुनिल और अनिल दोनो माँ को साथ ले जाने की जिद्द करने लगे। पर माँ अपने पति के बनाए घर पर ही रहना चाहती थी, अनिल की पत्नी अब उस घर में नहीं आना चाहती थी। माँ वहाँ नहीं जाना चाहती थी। आखिर माँ सुनिल के साथ जाने को तैयार हो गई, इस घर को बेच दिया गया। ज़िन्दगी में कब क्या हो जाए पता नहीं होता , हम सोचते कुछ हैं होता कुछ ओर है। दो साल बीत गए थे, अनिल और बहु माँ का हाल चाल जानते रहते थे। अनिल के घर में बेटे का जन्म हुआ था पर कुछ देर बाद ही चल बसा। घर में मातम पसरा था, माँ अनिल के पास आई थी सुनिल भी था। दस दिन बाद सुनिल माँ को लेकर जाने लगा पर माँ अनिल के साथ कुछ दिन रहना चाहती थी। सुनिल अकेला ही चल पड़ा जिस गाड़ी से जा रहा था वो दुर्घटनाग्रसत हो गई थी और सुनिल के मरने की खबर घर पर आई । माँ और अनिल पर तो मानो गमों का पहाड़ टूट पड़ा हो, सविता नहीं जानती थी कि बार बार उसके साथ ऐसा क्यों हो रहा है। वो बेहोश हो गई , होश मे् आकर भी क्या करती। बस फूट फूट कर रो रही थी। काफी दिन तक यही हालत रही, आखिर अनिल और बहु ने कहा माँ अब तुम कहाँ रहोगी !
हमारा मतलब है सुनिल तो किराए के घर में रहता था और सुनिल की पत्नी तो माएके चली गई है।
पापा का घर तो नहीं रहा बिक गया है,ये भी आपके घर जैसे ही है। माँ को लगा आज उसके हाथ खाली हो गए हैं। वो अपना सब कुछ गंवा चुकी है।हालात बहुत बदल गए थे।

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |