लघुकथा

नानी, मुझे मत भेजो

ट्रेन में बैठना छोटी-सी उम्र की साक्षी को बहुत अच्छा लगता था, पर आज की बात कुछ और थी. आज उसका मुखमंडल मुरझाया हुआ था. आज उसे ट्रेन में बैठना नहीं सुहा रहा था. उसे तो नानी की गोद सुहाती थी. उसके मन में थीं विचारों की झड़ियां और आंखों में आंसुओं की लड़ियां.

 

इतने वर्षों बाद वह नानी से बिछुड़ रही थी और वह भी हमेशा के लिए. अब शायद फिर कभी नानी के पास नहीं आ सकेगी. नानी ने ही उसे कहानियां सुना-सुनाकर भावनाओं और विचारों से समझदार बनाया था. वह खुद भी छोटी-छोटी कहानियां लिखने लगी थी. नानी की मेंहदी दूर-दूर तक मशहूर थी. जाने कितनी-कितनी दूर से लोग उनसे मेंहदी लगवाने आते थे. वह भी मेंहदी रचाना सीख गई थी. गाती भी थी- मेंहदी राचणी रे, म्हारे नानके सों आई. नानके की मेंहदी उसके हाथों में रची थी, शायद यह नानके की आखिरी मेंहदी थी. आंखें अभी भी नानी को ढूंढ रही थीं, जो स्टेशन पर छोड़ने आई थीं. नानी के साथ ही समझदारी भी उसका साथ छोड़ गई थी. वह लगातार कहती जा रही थी- ”नानी, मुझे मत भेजो”. नानी क्या करती? उनका बस चलता, तो कभी न भेजती. पर, दादी लेने आई थी. कह रही थी- ”समधिन जी, इब साक्षी ने म्हारे साथ खंदाय दियो. छोरी को गौनो करणो सै. टेम कमती है, मेंहदी भी रचाय दियो छोरी के. सासरे वाले छोरी को भेजण की जल्दी मचा रह्या सै.”

ट्रेन में बैठी साक्षी के आंसू थम ही नहीं रहे थे.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

3 thoughts on “नानी, मुझे मत भेजो

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अछि लघु कथा लीला बहन .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको रचना बहुत सुंदर लगी. हमेशा की तरह आपकी लाजवाब टिप्पणी ने इस ब्लॉग की गरिमा में चार चांद लगा दिये हैं. छोटी-सी उम्र की साक्षी को नानी जैसा प्यार कहां मिलेगा? ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.

  • लीला तिवानी

    छोटी-सी उम्र की नानी के पास रहकर साक्षी खुश थी. उसका कहना था मुझे मत भेजो. उसे क्या पता है, कि विवाह क्या होता है और सासरा क्या होता है. वह तो अभी नानी के लाड़ में पली नन्ही-सी गुड़िया थी.

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